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26 दिसंबर 2010

इंजीनियरिंग में शोध के लिए साथ आए भारत-अमेरिका

भारत और अमेरिका की स्थितियां भले ही भिन्न हों, लेकिन इंजीनियरिंग में भविष्य की जरूरतों व मौजूदा चुनौतियों ने दोनों को साथ लाकर खड़ा कर दिया है। दोनों ही देशों की युवा प्रतिभाओं का इंजीनियरिंग शोध में मन नहीं लग रहा है। मुश्किलें और भी हैं। यही वजह है कि दोनों ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए साझी पहल की संभावनाएं तलाशना शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक वैसे तो अमेरिकी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की अपनी अलग-अलग दिक्कतें भी हैं, लेकिन इंजीनियरिंग में शोध के प्रति उदासीनता दोनों देशों के छात्रों में लगभग एक जैसी है। दोनों देशों की स्थितियां भिन्न होने के बावजूद अंतरविषयी पढ़ाई, सामाजिक व विकास की जरूरतों का दबाव और वैश्वीकरण से जुड़ी दिक्कतें भी एक दूसरे से लगभग मिलती-जुलती हैं। हालांकि अमेरिका के प्रतिभाशाली छात्रों में इस ओर रुझान के कुछ संकेत हैं, फिर भी उन्हें अंतरविषयी शोध और समस्या से निजात की जमीन तैयार करने के रास्ते पर लाना जरूरी है। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां भी इंजीनियरिंग में शोध और उसे शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना एक अहम् चुनौती है। ऐसे में सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखकर इस ओर छात्रों का रुझान बढ़ाने से न सिर्फ इंजीनियरिंग की पढ़ाई और शोध में सुधार होगा, बल्कि सही मायने में दिक्कतों को दूर करने की दिशा में बड़ा कदम होगा। लेकिन इन कोशिशों के बाद भी छात्रों में इंजीनियरिंग को लेकर स्फूर्ति नहीं पैदा हुई तो मुश्किलें लगातार बढ़ती जाएंगी। दोनों प्रौद्योगिकी संस्थानों की एक जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए ही भारत-अमेरिका द्विपक्षीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी फोरम मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ मिलकर आगामी 10 व 11 जनवरी को दिल्ली में साझा कार्यशाला करने जा रहे हैं(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,नई दिल्ली,२६.१२.२०१०)।

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