बैचलर ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन एण्ड सर्जरी (बीएचएमएस) के कई छात्र तीस साल पहले पढाई पूरी होने के बाद भी आज मूल हिंदी लिखित डिग्री का इंतजार कर रहे हैं। लाख जतन करने के बाद भी उन्हें फाइनल डिग्री नहीं मिली। थक हारकर अब इन चिकित्सकों को सरकार से ही कुछ राहत की उम्मीद बची है। काम चलाऊ व्यवस्था के तौर पर इन्हें कम्प्यूटर से निकाली गई अंग्रेजी लिखित डिग्री बिना किसी दीक्षांत समारोह के दी गई है।
डॉ. मदनप्रताप खूंटेटा होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज वष्ाü 1986 में राजस्थान विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हुआ था। इसका पहला बैच 1989 में निकला। तब से वष्ाü 2008 तक करीब 30 बैच, यह कोर्स कर निकल गए। लेकिन उन्हें अब तक डिग्री नहीं मिली। हर बैच में करीब 100 चिकित्सक बताए जा रहे हैं।
समस्या ही समस्या
चिकित्सकों के अनुसार बाद में होम्योपैथी को जोधपुर आयुर्वेद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया। अब जयपुर में भी होम्योपैथी विश्वविद्यालय खुलने से इसका राजस्थान विवि से कोई सम्बंध नहीं रहा। डिग्री से वंचित चिकित्सकों का कहना है कि इस बीच 1995 में शुरू हुए एम.डी. (होम्यो.) कोर्स की डिग्री वष्ाü 2002 में आयोजित दीक्षांत समारोह में प्रदान कर दी गई।
चक्कर लगाकर थक गए
डिग्री के लिए विश्वविद्यालय के कई चक्कर लगाए। दीक्षांत समारोह में हिंदी की मूल डिग्री पाने की हसरत आज तक अधूरी ही है। 1995 में शुरू हुए एम.डी. कोर्स में प्रभावशाली लोगों के शामिल होने से उन्हें डिग्री दे दी गई-डॉ.मुकेश गुप्ता, अध्यक्ष, होम्योपैथिक प्रेक्टिसनर्स सोसायटी
मूल हिंदी डिग्री के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय को कई बार लिखा जा चुका है। वहां से निकले छात्रों को तो वहीं से डिग्री मिलेगी-डॉ. गिरेन्द्रपाल, पूर्व प्राचार्य, डॉ.मदनप्रताप खूंटेटा होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज
विकास जैन(राजस्थान पत्रिका,जयपुर,8.12.2010)
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