सामाजिक-आर्थिक अध्ययनों में सामने आया है कि सेरीकल्चर उद्योग को शुरू करने में लागत कम और मुनाफा ज्यादा है। यह उद्यमियों और रोजगार की तलाश कर रहे लोगों के लिए शानदार कॅरियर विकल्प है। पिछले एक दशक में सिल्क उत्पादों का निर्यात बढ़ने से भी सेरीकल्चर में विकास व आय की गुंजाइश बढ़ी है।
सेरीकल्चर शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द सेरीकोस यानी सिल्क और अंग्रेजी शब्द कल्चर यानी संवर्धन से हुई है। सेरीकल्चर सिल्क वर्म्स को पालकर उनसे रॉ सिल्क यार्न उत्पन्न करने की तकनीक है। कुटीर व लघु उद्योग के अंतर्गत आने वाला यह अच्छा मुनाफा देने वाला व्यापार है। इस काम से ग्रामीण या पिछड़े क्षेत्रों में रह रही महिलाओं को रोजगार मिलता है और इसी वजह से सेरीकल्चर भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महती भूमिका निभाता है। यह सिर्फ वर्म्स तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे जुड़े दूसरी कार्यो से भी वास्ता रखता है। जैसे मलबरी की खेती, कोकून बनने के बाद की तकनीक इत्यादि। इस कार्य को करने में तकनीकी ज्ञान के साथ ही विशेषज्ञता की भी दरकार होती है।
क्या है सेरीकल्चर
सेरीकल्चर का अर्थ है सिल्क का उत्पादन करने वाले जीव का बड़े पैमाने पर पालन। मलबरी सेरीकल्चर में मलबरी की खेती की जाती है, जिससे पत्तियों का कोकून और फिर कोकून से सिल्क का धागा हासिल किया जाता है। लंबे समय से चीन और जापान मिलकर पूरे विश्व के तकरीबन 50 फीसदी सिल्क यार्न का उत्पादन करते थे। अब भारत भी इसमें शामिल हो गया है। अंतरराष्ट्रीय सिल्क उत्पादन का चलन बताता है कि यह उद्योग विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में बेहतर संभावनाएं लिए हुए है।
सिल्क उत्पादन करने वाले प्रमुख देश
विश्व में सिल्क की खपत करने वाले देशों में अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली, डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड, जापान, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं। सिल्क मॉथ्स की विविधता के कारण भारत कई तरह का सिल्क बनाने वाला देश है। हमारा देश सिल्क के पांच मुख्य प्रकारों का उत्पादक है, जिसमें मलबरी सिल्क, टसर, इरी, ओक व मुगा शामिल हैं। सिल्क उत्पादित करने वाले देशों में भारत टसर व इरी के मामले में सबसे ऊपर है।
योग्यता
सेरीकल्चर में स्नातक करने के लिए चार वर्षीय डिग्री पाठच्यक्रम देश के कई कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा चलाया जा रहा है। इसमें दो तरह के स्नातक हैं, बीएससी (सेरीकल्चर) और बीएससी (सिल्क टेक्नोलॉजी)। स्नातक करने के लिए बायोलॉजी या केमिस्ट्री से बारहवीं उत्तीर्ण करना आवश्यक है। इस कोर्स में सिल्क रियरिंग की पूर्ण तकनीक की जानकारी दी जाती है। इसके उपरांत स्नातकोत्तर भी किया जा सकता है। व्यक्तिगत योग्यता के तहत इस कार्य को करने के लिए सहनशक्ति, धर्य, समर्पण, प्रतिकूल पस्थितियों में कार्य करना और वैज्ञानिक विकास की तरफ रुझान आवश्यक है।
पारिश्रमिक
इस क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवर सार्वजनिक क्षेत्र से काम की शुरुआत पंद्रह हजार रुपए प्रति माह से कर सकते हैं, जबकि निजी क्षेत्र में यह राशि और बढ़ सकती है। इसमें अनुभव के साथ ही आय में बढ़ोत्तरी होती है। अगर आप सिल्क उत्पाद के निर्यात के कार्य से जुड़े हैं तो इसके और ज्यादा फायदे हैं।
रोजगार के अवसर
पिछले कुछ समय में सेरीकल्चर ने रोजगार व उद्यमों के लिहाज से संभावनाओं के विकल्प खोले हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत के तकरीबन हर राज्य में सेरीकल्चर विभाग है जहां सिल्क वर्म्स का पालन-पोषण किया जाता है। विश्व के कई मुल्कों में सेरी कल्चरिस्ट की भारी मांग है। अध्ययन केंद्र, सरकारी रिसर्च केंद्र, सिल्क बोर्डस, शैक्षणिक क्षेत्र, सेरीकल्चर इकाई, कृषि बैंक, सिल्क निर्यात काउंसिल, नाबार्ड, कृषि विज्ञान केंद्र वगैरह में रोजगार की प्रबल संभावनाएं हैं। सेरी कल्चरिस्ट अपना उद्यम भी शुरू कर सकते हैं। इस कार्य की पूर्ण जानकारी रखने वाले कंसल्टेंट्स की भी भारी मांग है। सेरीकल्चर फार्म की स्थापना में इसकी आवश्यकता होती है(दैनिक भास्कर,6.12.2010)।
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