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12 दिसंबर 2010

राज्य लोकसेवा आयोग बने मुख्यमंत्रियों की ’जागीर’

सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कहा है कि राज्य लोकसेवा आयोग मुख्यमंत्रियों की ‘जागीर’ बन गए हैं। इनमें दागी व्यक्तियों को अध्यक्ष और सदस्य बनाया जा रहा है। जस्टिस जीएस सिंघवी ने कहा, ‘राज्य लोकसेवा आयोग ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति करता है जो भविष्य में प्रशासन चलाएंगे। पिछले कुछ वर्षों में राज्य लोकसेवा आयोगों के अध्यक्ष तथा सदस्यों के पद मुख्यमंत्रियों की जागीर बन गए हैं।’

उन्होंने कहा कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार समेत विभिन्न राज्यों से कई मामले सामने आए हैं। इन राज्यों में आयोग के अध्यक्ष के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। जस्टिस सिंघवी ने ये विचार शनिवार को केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की अखिल भारतीय कान्फ्रेंस में जताए।


जस्टिस सिंघवी ने कहा, ‘पंजाब में एक सदस्य पर 302 (आईपीसी) के तहत मामला चल रहा है। ये किस तरह की भर्तियां करेंगे? यदि भर्ती एजेंसियों में दागी लोगों की भरमार होगी तो अदालतों तथा ट्रिब्यूनलों में मामलों की संख्या बढ़ेगी।’ उन्होंने कान्फ्रेंस में मौजूद कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और कार्मिक राज्यमंत्री वी. नारायणसामी से आग्रह किया कि वे इन गंभीर मुद्दों पर ध्यान दें ताकि बेवजह के मुकदमों से निजात मिल सके(दैनिक भास्कर,दिल्ली,12.12.2010)।

दैनिक जागरण की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भ्रष्टाचार व कार्यपालिका में बढ़ते अपराधीकरण पर निरंतर हमला बोल रहे हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गड़बड़ होने संबंधी न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू की टिप्पणी के बाद शीर्ष अदालत के एक अन्य न्यायाधीश जीएस सिंघवी ने राज्यों के लोकसेवा आयोग पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि खेदजनक है कि राज्य लोक सेवा आयोग मुख्यमंत्रियों की जागीर बन गए हैं, जहां दागियों को अध्यक्ष और सदस्य बनाया जा रहा है। 

न्यायाधीश जीएस सिंघवी ने शनिवार को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के अखिल भारतीय सम्मेलन को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कहा, भविष्य का प्रशासन चलाने वालों की नियुक्ति राज्य लोक सेवा आयोग ही करते हैं। गत कुछ वर्षो से इनकी सदस्यता और अध्यक्षता मुख्यमंत्रियों की जागीर हो गई है। एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। इनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं जहां आयोग अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगे हैं। ऐसा इसलिए कि वे योग्य नहीं हैं। उनमें सत्यनिष्ठा नहीं है। पंजाब में आयोग के एक सदस्य के खिलाफ हत्या का मुकदमा चल रहा है। यदि नियुक्ति करने वाली संस्था में ही ऐसे दागी और अयोग्य लोग होंगे तो मुकदमे तो होने ही हैं। उन्होंने नौकरी से जुड़े मामलों की अदालतों में बाढ़ की स्थिति से बचने के लिए एक आंतरिक तंत्र विकसित करने पर जोर दिया। 

न्यायाधीश ने कहा, यह सोचना कि उसे अदालत में जाने दें. यह एक बीमारी है। यह एक गंभीर मामला है जिस पर हर हाल में उचित मंच पर बहस होनी चाहिए। सरकार को हर हाल में इस बात पर जोर देना चाहिए कि ऐसे मामले अनिवार्य रूप से अदालत नहीं पहुंचे। एक प्रशासक को अपना समय मुकदमा लड़ने में नहीं बल्कि आम लोगों की सेवा करने में बिताना चाहिए। उन्होंने सम्मेलन में मौजूद केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोइली और कार्मिक राज्य मंत्री वी. नारायणसामी से कुछ ऐसे मसलों पर गंभीरता से विचार करने को कहा, जिनसे अनुचित मुकदमें रोके जा सकें। इस अवसर पर मोइली ने सरकारी अधिकारियों को उनकी सेवा के मामलों को लेकर अदालत या न्यायाधिकरण में जाने के विशेषाधिकार और जनता के सेवक होने के बीच में संतुलन बनाए रखने को कहा। उन्होंने कैट और राज्य राज्य के न्यायाधिकरणों की कार्यप्रणाली में सुधार की जरूरत पर बल दिया। मोइली ने कहा, मुकदमों के निबटारे में विलंब रोकने को वीडियो कांफ्रेंसिंग की शुरुआत की जा सकती है।

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