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07 दिसंबर 2010

बिहारःविश्वविद्यालय शिक्षकों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाने के पेंच

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि विश्र्वविद्यालय शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 से बढ़ाकर 65 साल करने में पेचीदगी है। मेरी मंशा तो सबेरे होने से पहले तक उम्र सीमा बढ़ाकर 65 साल करने की है। सेवानिवृत्ति की उम्र निर्धारित करने का अधिकार जब राज्य सरकार को प्राप्त हो जायेगा, तो मैं इसे और अधिक भी कर सकता हूं। वे सोमवार को बिहार विधानपरिषद में एक ध्यानाकर्षण के जवाब के दौरान हस्तक्षेप कर रहे थे। मुख्यमंत्री के अनुसार उनकी सोच है कि शिक्षक जब अधिक उम्र के होते हैं तो उनको पढ़ाने में दिक्कत नहीं होती है। दोनों सदनों में स्पष्टता के साथ कहा गया है कि वह चाहते हैं कि शिक्षकों की सेवानिवृति उम्र 65 साल की जाए किन्तु मामला कानूनी पेंच में है। इसका समाधान होना चाहिए। विश्र्वविद्यालयों में कई प्रकार की कानूनी उलझनें हैं। उन्होंने सदन के कुछ सदस्यों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कानूनी पेंच आप लोगों ने पैदा किया। कानूनी उलझनों को सुलझाने के उद्देश्य से ही राज्य के महाधिवक्ता को मानव संसाधन मंत्री बनाया गया है। संयोग से सभापति भी पूर्व महाधिवक्ता हैं। सभापति ताराकांत झा ने कहा कि राज्य सरकार अपनी ओर से सर्वोच्च न्यायालय में प्रयास करे कि समस्या का शीघ्र निराकरण हो जाए। इससे पूर्व मानव संसाधन संसाधन मंत्री प्रशांत कुमार शाही ने नरेन्द्र प्रसाद सिंह के ध्यानाकर्षण के जवाब में कहा कि विश्र्वविद्यालय शिक्षकों की सेवानिवृति उम्र बढ़ाने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लम्बित है। सेवानिवृति की उम्र घटाने-बढ़ाने का अधिकार राज्य सरकार को दिये जाने संबंधी प्रस्ताव भी राजभवन से लौट आया है। विश्र्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करना है। उच्च न्यायालय द्वारा 30 जून 2010 तक यथास्थिति बनाए रखने का जो न्याय निर्णय हुआ, उसका विश्र्वविद्यालयों ने अपने तरीके से अर्थ लगाकर भुगतान किया है। श्री शाही ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का जो फैसला आयेगा उसके आलोक में सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाने पर सरकार विचार करेगी। प्रश्नकर्ता श्री सिंह ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय के एक फैसले के आधार पर ही 62 वर्ष के बाद सेवानिवृत्त विश्र्वविद्यालय प्राध्यापक पुन: काम पर लौट आए व भुगतान हो रहा है। इसपर प्रो. अरुण कुमार व वीरकेश्र्वर प्रसाद सिंह ने पूरक प्रश्नों की झड़ी लगा दी। मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद सदस्य चुप हो गए(दैनिक जागरण,पटना,7.12.2010)।

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