तैयारी तो सभी छात्र करते हैं, लेकिन छात्रों की भीड़ में से कुछ चेहरे ऐसा कर गुजरते हैं, जो इतिहास बन जाता है। उनकी इस सफलता के पीछे टाइम मैनेजमेंट का बहुत अहम रोल होता है। इस बारे में बता रही हैं नमिता सिंह
प्री बोर्ड परीक्षा खत्म होने तथा उसका रिजल्ट आने के बाद छात्रों का पूरा ध्यान बोर्ड एग्जाम पर होता है। इसके लिए वे रणनीति बनाने तथा तैयारी को अंतिम चरण तक ले जाने में लग जाते हैं। फिलहाल छात्रों के पास 12वीं बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी के लिए दो महीने से भी कम समय शेष है। इस समयावधि में उन्हें अपना कोर्स तो कंपलीट करना ही है, साथ ही नंबरों की रेस में आगे भी दौड़ना है।
कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि छात्रों का अधिकांश कीमती समय अब बीत गया और अब कुछ नहीं हो सकता। बल्कि अभी भी इतना समय मौजूद है कि छात्र अपनी तैयारी को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकते हैं। छात्र जब परीक्षा के चक्रव्यूह को तोड़ने की रणनीति बना रहे होते हैं तो उनके महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं में से एक टाइम मैनेजमेंट भी होता है। इसको दरकिनार कर सफलता की उम्मीद करना बेमानी है।
इस तथ्य से हर कोई वाकिफ है कि गया वक्त फिर हाथ नहीं आता। पूरे साल छात्र ने मेहनत की या नहीं की, यह बात अब पुरानी हो चुकी है। उसके बारे में सोचने से कोई फायदा नहीं होने वाला। जो भी समय शेष है, उसकी कुछ इस तरह से प्लानिंग की जाए कि प्रतिदिन का हर घंटा आपके प्रयोग में आ जाए। विशेषज्ञ यह मानते हैं कि टाइम मैनेजमेंट सफलता पाने का अचूक हथियार है। इसी के दम पर बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले छात्र अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
सीबीएसई ने अपनी वेबसाइट पर ‘स्माइल योर वे थ्रू एग्जाम्स’ के नाम से एक शॉर्ट फिल्म डाल रखी है, साथ ही एक्सप्रेशन इंडिया ने भी एक पॉकेट बुकलेट व सीडी बाजार में उतारी है, जिससे छात्रों को कई तरह की सहायता मिल सकती है।
तैयारी का शडय़ूल बनाएं
अधिकांश छात्रों की दलील होती है कि टाइम मैनेजमेंट का पढ़ाई से क्या वास्ता? मैं तो सिलेबस को दोहराता ही हूं, चाहे जब और जिस टाइम दोहराऊं। वास्तविकता यह है कि समय का सुनियोजित तरीके से व्यवस्थित किया जाना पढ़ाई का ही एक हिस्सा है। शडय़ूल बनाते समय छात्रों को पूरी सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इसमें जरा सी चूक उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है। गैरजरूरी चीजों को अपने शडय़ूल से हटा दें तथा जिनकी आपको सख्त जरूरत है, उन्हीं को स्थान दें। आप दो तरह की लिस्ट बना सकते हैं। एक तो आपको क्या करना है और दूसरा क्या किया जाना आपके लिए ज्यादा जरूरी है।
सेमेस्टर प्लान भी कारगर
सेमेस्टर प्लान वह होता है, जिसमें छात्र विभिन्न विषयों को समय के हिसाब से बांटते हैं तथा कठिन विषयों पर विशेष रूप से अपना ध्यान फोकस करते हैं। कुछ विषय ऐसे होते हैं, जिन पर छात्रों की अच्छी पकड़ होती है, जबकि कुछ में वे परेशानी महसूस करते हैं। सेमेस्टर प्लान बनाने का उद्देश्य ही यही होता है कि सभी विषय आपके टच में आ जाएं। जो विषय कठिन हैं, उन पर अधिक समय तथा अपेक्षाकृत सरल लगने वाले विषयों पर कम समय खर्च करके अपनी तैयारी को अंतिम मोड़ तक ले जाएं।
टाइम मैनेजमेंट करते समय सबसे खास बात यह होनी चाहिए कि प्रतिदिन हर विषय पर आपकी नजर पड़े व परीक्षा से पूर्व अंतिम कुछ सप्ताह सिर्फ रिवीजन के लिए हों।
वीकली टाइम टेबल की अहमियत
भले ही आपने शेष बचे समय का अपनी जरूरत के हिसाब से प्रबंधन कर लिया हो, लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू सप्ताह के हिसाब से अपने अध्ययन कार्यों की सूची तैयार करना भी है। इससे आप हर विषय को बराबर समय दे सकेंगे। जबकि सप्ताह का अंतिम दिन सभी पढ़े हुए विषयों के रिवीजन के लिए निर्धारित कर दें। कठिन व आसान विषयों पर दिए जाने वाले समय को लेकर अपना नजरिया पहले से ही स्पष्ट रखें तथा जहां उसमें बदलाव करना जरूरी लगे, विषयों का फेरबदल भी कर सकते हैं, परन्तु इसे अपने स्वभाव में शामिल न करें। पढ़ाई से अलग भी गतिविधियों का उल्लेख छात्र अपने वीकली टाइम टेबल में कर सकते हैं।
डेली डायरी पर है सारा दारोमदार
महीने व सप्ताह के टाइम मैनेजमेंट के अलावा प्रतिदिन की कार्यसूची का उल्लेख भी किया जाना आवश्यक है। इसमें सबसे जरूरी है, विषयों का समायोजन। अर्थात् दो कठिन विषयों के बीच में एक आसान विषय को शामिल करना तथा 45-50 मिनट के लगातार अध्ययन के बाद 10 मिनट का ब्रेक। इस 10 मिनट के ब्रेक का उपयोग वे कुछ हल्का-फुल्का खाने या फोन आदि करने में कर सकते हैं। छात्र चाहें तो इसके लिए ब्लैंक शीट बना कर रख लें और प्रतिदिन जरूरत के हिसाब से उसे भर लें। अगले दिन की प्राथमिकताओं को सोते समय ही तय कर लें। कभी भी बिना प्लान के पढ़ने न बैठें।
स्पेसिफिक लर्निग डिजायर फंडा
पढ़ने का भी अपना एक तरीका होता है। तकनीकी भाषा में इसे ‘स्पेसिफिक लर्निग डिजायर’ कहा जाता है। इसके अंतर्गत छात्रों को यह बताया जाता है कि छात्रों को प्रतिदिन 6-8 घंटे की पढ़ाई करना आवश्यक है। साथ ही दो स्टडी ब्लॉक कंपलीट करने के बाद एक घंटे का ब्रेक लें। रोजाना पढ़े जाने वाले विषय का रिव्यू भी जरूरी है। कठिन स्टफ को उस समय पढ़ें, जब आपके अगल-बगल शोर-शराबा न हो रहा हो। छात्र कोशिश करें कि टाइम मैनेजमेंट करते समय उसे प्रात: काल का समय दें। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पढ़ा हुआ अच्छे से कंठस्थ हो जाता है। खेलकूद व टीवी देखना अभी से न छोडें, बल्कि उसका समय फिक्स कर दें।
तैयारी के दौरान क्या न करें
परीक्षा की तैयारी के समय कई तरह के बाधाकारी तत्त्व भी छात्रों के सामने आते हैं। कुछ गलतियां छात्रों द्वारा भी की जाती हैं। कुछ तो लापरवाही में होती हैं, जबकि कुछ अनजाने में हो रही होती हैं। कुछ चीजें नीचे दी गई हैं-
पूरे दिन का ब्रेक कभी न लें
दो से ज्यादा कठिन विषय एक साथ न पढ़ें
प्रतिदिन का रिवीजन आवश्यक है
टीटीडी (थिंक टू डू) का सहारा लें
कोई थका देने वाला खेल न खेलें
जो टॉपिक आज टच किए हैं, उन्हें आज ही खत्म करें
कठिन शडय़ूल न बनाएं
गीतांजलि कुमार, करियर काउंसलर
परीक्षा की तैयारी के दौरान टाइम मैनेजमेंट का कितना रोल है?
छात्रों ने पूरे साल मेहनत की है। अब जो बाकी समय बचा है, वह उनके लिए अधिक उपयोगी होता है। उसमें वे एक बेहतर प्लान तैयार करके सारे सब्जेक्ट को अपना क्वालिटी टाइम दे सकते हैं। टाइम मैनेजमेंट के जरिए वे अपनी तैयारी को और अधिक सशक्त बना सकते हैं।
पढ़ाई के अलावा और कौन सी चीजें टाइम मैनेजमेंट का हिस्सा हो सकती हैं?
टाइम मैनेजमेंट दो तरीकों से किया जाता है। एक पढ़ने का समय और दूसरा गैर पढ़ने का समय। गैर पढ़ाई के समय विभाजन में खाना, सोना, खेलकूद, घर के लोगों से बातचीत, रिलेक्स आदि चीजें आती हैं। ये सारी चीजें भी बहुत जरूरी हैं, अन्यथा आपका दिमाग सही तरीके से एकाग्र नहीं हो पाएगा।
टाइम मैनेजमेंट के दौरान किस तरह की सावधानी बरतनी जरूरी है?
टाइम मैनेजमेंट करते समय उसे फ्लैक्सिबल रखें तथा कुछ समय फ्री रखें। इस स्लॉट में कोई पेंडिंग काम कर सकते हैं। गैर पढ़ाई वाली चीजों को सुबह घर वालों को ऑफिस जाते समय और शाम को वापस आने के समयावधि के दौरान रखें। बहुत कठिन शडय़ूल न बनाएं, अन्यथा पूरा न होने पर मॉरल गिरेगा।
काउंसलर टाइम मैनेजमेंट में किस हिसाब से मददगार साबित हो सकते हैं?
टाइम मैनेजमेंट करने से पूर्व कई बार बच्चे मेरे पास आते हैं। सबसे पहले हम उनका डेली रुटीन लिखवाते हैं, फिर उनके हफ्ते भर का टास्क पूछते हैं। उसके हिसाब से उनको गाइडलाइन दी जाती है। मेरा बच्चों को यही सुझाव है कि वे आसान विषय से पढ़ाई शुरू करें। इससे उनमें स्फूर्ति आएगी। पढ़ने से जब थक जाएं तो रिटन वर्क करें।
ब्लैंक शीट का टाइम मैनेजमेंट में क्या रोल है?
छात्र अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर ब्लैंक शीट बना सकते हैं। इतना जरूर है कि छात्र सोने से पूर्व उस दिन के कार्यों पर एक बार दिमाग जरूर दौड़ा लें कि क्या-क्या कमियां रह गईं। अगले दिन इसे न दोहराने का संकल्प लें। अगले दिन की प्राथमिकताओं को उसी समय तय कर लें।
(नमिता सिंह,हिंदुस्तान,12.01.2011)
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