देश में छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को बुनियादी शिक्षा के दायरे में लाने वाला शिक्षा अधिकार कानून भले ही लागू हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में कानून पर अमल कोसों दूर है। तमाम कोशिशों के बावजूद सूबे के सरकारी स्कूलों में यदि छात्रों की उपस्थिति निराशाजनक है तो शिक्षकों की जबर्दस्त कमी भी चिंता का विषय है। सूबे में बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं जिनमें बच्चों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। सूबे के बदहाल शैक्षिक परिदृश्य को उजागर करती है गैर सरकारी संस्था प्रथम द्वारा तैयार एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2010। प्रदेश के 69 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों के 1896 सरकारी स्कूलों में किये गए सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट बताती है कि 30 फीसदी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों और 26.6 फीसदी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति 50 फीसदी से कम रहती है। सर्वेक्षण में सूबे के महज 21.3 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मुताबिक पाया गया। प्रदेश के 5.4 प्रतिशत प्राथमिक और 4.8 फीसदी उच्च प्राथमिक स्कूलों में प्रधानाध्यापक नियुक्त नहीं पाये गए। वहीं 26 फीसदी प्राथमिक और 24.7 प्रतिशत उच्च प्राथमिक स्कूल ऐसे मिले जहां प्रधानाध्यापक तो नियुक्त थे लेकिन सर्वेक्षण के दिन अनुपस्थित थे। प्राथमिक स्कूलों के 19 प्रतिशत व उच्च प्राथमिक स्कूलों के 21 फीसदी शिक्षक भी नदारद पाये गए। सर्वेक्षण के दौरान 6.9 प्रतिशत परिषदीय स्कूलों में पेयजल सुविधा नहीं मिली। वहीं 10.9 प्रतिशत स्कूलों में पेयजल की सुविधा होने के बावजूद पीने के लिए पानी मयस्सर नहीं था। 6.7 फीसदी स्कूलों में शौचालय की सुविधा नदारद थी जबकि 44 फीसदी स्कूलों में शौचालय इस्तेमाल के लायक नहीं पाये गए। 24.9 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की सुविधा नहीं थी। जिन स्कूलों में बालिकाओं के लिए शौचालय थे, उनमें से 25.4 प्रतिशत स्कूलों में वे बंद थे जबकि 14.2 फीसदी इस्तेमाल के काबिल नहीं मिले। सर्वेक्षण में 51.4 प्रतिशत स्कूल पुस्तकालय की सुविधा से महरूम पाये गए। 55.6 प्रतिशत स्कूलों में चहारदीवारी नदारद थी जबकि 39.2 फीसदी विद्यालयों में खेल का मैदान नहीं था(राजीव दीक्षित,दैनिक जागरण,लखनऊ,19.1.11)।
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