कंपकंपाती ठंड का हो या चिलचिलाती धूप शिक्षा रूपी फल का स्वाद चखने के लिए नन्हें-मुन्ने सजा झेलने को बेबस हैं। शिकायतों के बाद जब दैनिक भास्कर टीम ने शहर के कुछेक एलीमैंट्री स्कूलों का मौका-ए-मुआयना किया तो बचपन की बेहाली का ऐसा आलम दिखा की पत्थरदिल भी पसीज जाए।
देश के हुक्मरान चाहे मिड-डे मील का कार्यक्रम चला कर अपनी पीठ थपथपा रहे हों, लेकिन हकीकत में जिले के एलीमैंट्री स्कूलों में पढऩे वाले 51 फीसदी बच्चे अभी भी टाट पर बैठने को मजबूर हैं। मात्र 49 फीसदी बच्चों को ही बैठने के लिए बैंच नसीब हैं।
ठंड का दंश
एसीबी टीम जब सरकारी एलीमैंट्री स्कूल नवांकोट पहुंची तो यहां पहली जमात के बच्चे भविष्य संवारने के लिए टाट पर बैठ कर पढ़ते दिखे। वहीं कुछेक तो ठंड की मार से बचने के लिए टाट से पीछा छुड़ाने के लिए इधर-उधर खड़े दिखे। यहां दो सैक्शनों के करीब 63 बच्चे टाट पर ही बैठे थे। वहीं बिल्डिंग में ही चल रहे सरकारी एलीमैंट्री स्कूल डैमगंज में भी हालात इससे जुदा नहीं थे। यहां पहली कक्षा के 70 विद्यार्थी और दूसरी कक्षा के करीब 43 बच्चे टाट पर ही बैठकर किताबों के पन्ने पलट रहे थे।
बैंचों की स्थिति
कुल एलीमैंट्री के स्टूडेंट्स : 95,000
बैंचों पर बैठने वाले बच्चे : 46,032
टाट पर बैठने वाले बच्चे : 48968(सतीश शर्मा,दैनिक भास्कर,अमृतसर,21.1.11)
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