अप्रैल 2010 में 'फेल' कर दिए गए मुंबई यूनिवर्सिटी के छात्रों ने जब रिवैल्यूएशन के लिए आवेदन किया था, तब सामान्य भावना के तहत उनको उम्मीद थी कि वे पास हो जाएंगे। उनमें से अधिकतर की उम्मीद सही साबित हुई है। 2010 में यूनिवर्सिटी ने जितने भी छात्रों के पेपर का पुनर्मूल्यांकन किया, उनमें से अधिकतर पास हो गए हैं। इससे जांच प्रक्रिया पर सवालिया निशान लग रहे हैं।
हालांकि अभी किसी को मार्कशीट नहीं मिली है, लेकिन वेबसाइट पर घोषित परिणाम के अनुसार, रिवैल्यूएशन ने इस साल छात्रों की तकदीर बदल दी है। एनबीटी को मिली जानकारी के मुताबिक, बैचलर ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के फाइनल इयर में एक पेपर में 100 छात्र फेल हुए थे। इनमें से 87 इंटरनैशनल फाइनैंस के पेपर में फेल रहे। 6 क्वांटिटेटिव मैथड ऑफ बिजनेस, दो स्पेशल स्टडी इन मार्केटिंग में, मार्केटिंग रिसर्च में 4 और आंटरप्रिन्योरशिप में 1 छात्र फेल था। सभी ने पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन किया। आश्चर्यजनक रूप से इनमें से 97 पास हो गए (इनकी लिस्ट एनबीटी के पास है)।
यही हाल पीजी और बीए, बीएससी, बीकॉम के उन सभी विषयों का है, जिनके रिवैल्युएशन रिजल्ट विवि ने गत नवंबर-दिसंबर में घोषित किए। रिवैल्युएशन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, सभी विषयों में 85-98 प्रतिशत छात्र पास हो गए हैं। इससे शैक्षिक हलकों में सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या अप्रैल एग्जाम में कॉपी जांचने का महज नाटक हुआ? सवाल यह भी है कि जिन विषयों में छात्र पास हैं, क्या वे मार्क्स सही हैं?
गाना सुनते जांची जाती है कॉपियां
कॉपियों की जांच कैसे होती है, यह पुनर्मूल्यांकन के परिणाम से साफ है। एग्जामिनर रहे टीचर्स ने एनबीटी से स्वीकारा, 'गाना सुनने, मोबाइल पर बात करने और मजाक के बीच उड़ती निगाह कॉपी पर डाली जाती है और अंदाज से नंबर दिया जाता है।' कॉमर्स के असोसिएट प्रफेसर ने कहा, 'काम का दबाव इतना होता है कि एक कॉपी को दो मिनट से अधिक नहीं दिया जाता। इतने समय में जवाब पढ़ना, नंबर देना और टोटल करना असंभव है जिसे हम संभव बनाते हैं। गलतियां होंगी ही।' सूत्रों के अनुसार, टीचर्स की संख्या भी बहुत कम है और 45 दिन में परिणाम निकालने का नियम गले की हड्डी बन गया है। ऐसे में पुनर्मूल्यांकन करनेवाले टीचर्स का काम भी बढ़ा है।
एक कॉपी-8 रुपए
एक टीचर को एक दिन में न्यूनतम 30 कॉपियां जांचनी होती हैं लेकिन अधिकतम की सीमा नहीं है। लिहाजा लोग शुरू के कुछ दिन सुपरफास्ट काम करके बाकी दिन खानापूरी करते हैं। विवि अंडरग्रैजुएट की हर कॉपी के लिए 8 रु और पीजी के लिए 11 रु देता है। ऐसे में स्पीड बढ़ाकर ही पैसे बनाए जा सकते हैं।
आपराधिक स्तर की लापरवाही
आपराधिक स्तर की इस लापरवाही की वजह से ही हजारों अच्छे छात्र भी बेवजह ' फेल ' हो जाते हैं। फेल्योर का स्टिग्मा 8 महीने से झेल रहे हिंदी के छात्रों ने एनबीटी को बताया , ' लोग कटाक्ष करते हैं कि मातृभाषा में भी फेल हो गए ? रिवैल्युएशन में हम पास हो गए लेकिन क्या विवि इमोशनल अत्याचार का मुआवजा देगा ? जिन अध्यापकों ने पहले फेल किया उन्हें सजा मिलनी चाहिए। '
कैसे जांची जाती हैं कॉपियां
. अधिकतर शिक्षक मोबाइल पर गाना सुनते जांचते हैं कॉपियां
. एग्जामिनर एक दिन में करता है 150-200 कॉपियों की जांच
. सीजन में 70-80 हजार रु बनाते हैं एग्जामिनर
मूर्ख छात्र बन जाते हैं टॉपर
32-5 ए कमिटी में राजनीति घुस चुकी है। वे अनुभव के बजाय अपने कैंप के अनुभवहीन शिक्षकों को एग्जामिनर और मॉडरेटर नियुक्त करते हैं। यह वजह है जांच प्रक्रिया दम तोड़ चुकी है। इससे कई बार बेवकूफ छात्र टॉपर बन जाता है। यूनिवर्सिटी को छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बंद करके संजीदा कदम उठाने चाहिए-एक प्रफेसर , मुंबई विवि
कॉपियां जांचने में नहीं हो रहा न्याय
मैं मानता हूं कि तंत्र में खामियां हैं और छात्रों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा। रिवैल्यूशन का रिजल्ट चौंकानेवाला है। एग्जामिनर जिम्मेदारी ढंग से नहीं निभा रहे। मॉडरेटर भी हर कॉपी चेक नहीं कर सकता। फिलहाल ऐसा कोई मेकैनिज्म नहीं है , जिससे हम इस पर नजर रख सकें। प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है। इस साल क्रेडिट सिस्टम शुरू हो जाएगा , तब ऐसी गलतियां कम होंगी-प्रफेसर विलास शिंदे , कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन , मुंबई विवि
मुझे इसकी जानकारी संबंधित विभाग से लेनी पड़ेगी। लेकिन हम एग्जामिनेशन रिफॉर्म्स पर काम कर रहे हैं-डॉ राजन वेलुकर , वाइस चांसलर
बिंदास बोल : ऐसी लापरवाही क्या इलाज है?
(कंचन श्रीवास्तव,नवभारत टाइम्स,मुंबई,16.1.11)
दुर्भाग्य है हमारे देश का।
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