सामान्य श्रेणी की सीटों के लिए राजधानी के स्कूलों में एक पखवाड़े तक चली नर्सरी दाखिले के लिए आवदेन दौड़ अब खत्म हो गई। अब गेंद स्कूलों के पाले में है और इस बार मुकाबला बीते वर्षो की अपेक्षा और ज्यादा मुश्किल है।आरटीई एक्ट के चलते राजधानी के स्कूलों में सीधे तौर पर 25 फीसदी सीटें गरीब कोटे के छात्रों को उपलब्ध होने से सामान्य श्रेणी के आवेदकों में दाखिले को लेकर भारी अनिश्चितता दिख रही है।
यही वजह है कि इस बार बीते साल 10 से ज्यादा स्कूलों में आवेदन करने वाले अभिभावकों का आंकड़ा इस बार आठ फीसदी तक उछला है, जबकि 15 से ज्यादा स्कूलों में आवेदन करने वाले अभिभावकों की संख्या में साढ़े छह फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
नर्सरी की दाखिला प्रक्रिया को लेकर स्कूल एडमिशंस डॉट इन नामक एक वेबसाइट पर हुए एक सर्वे मंे पता चला है कि इस बार नर्सरी में दाखिले को लेकर अभिभावक बीते साल के मुकाबले ज्यादा चितिंत है।
14 जनवरी को शुरू हुए इस सर्वे में 16 जनवरी रात तक एकत्र हुए आंकड़ों के मुताबिक सत्र 2011 के लिए 10 से ज्यादा स्कूलों में दाखिले के लिए आवेदन करने वाले अभिभावकों का प्रतिशत 55 फीसदी पहुंच गया है, जो बीते साल सत्र 2010 के लिए 47 फीसदी था।
इसी तरह 15 से ज्यादा स्कूलों के लिए 2011 का यह आंकड़ा 25 फीसदी है, जबकि सत्र 2010 के लिए यह 18.5 फीसदी था। साफ है कि अभिभावक अपने बच्चे के लिए नर्सरी दाखिले को लेकर बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं है तभी तो वह बढ़-चढ़कर ज्यादा से ज्यादा स्कूलों में दावेदारी ठोंक रहे हैं।
स्कूल एडमिशंस डॉट इन के संस्थापक राजन अरोड़ा का कहना है कि इस बार दाखिले की डगर आसान नहीं है। अभिभावकों के रवैये में बदलाव का सबसे बड़ा कारण आरटीई एक्ट है, जिसके चलते समूची स्थिति ही बदल गई है।
इस एक्ट के चलते जिस तरह से स्कूलों के प्वाइंट सिस्टम (कैटगरी) से अभिभावकों प्रोफेशनल व एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की छुट्टी हुई, उसके चलते भी अभिभावक परेशान हैं।
नामचीन नहीं तो नए स्कूल सही
दाखिला सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस बार नर्सरी की दाखिला प्रक्रिया में नामचीन स्कूलों के साथ-साथ उन स्कूलों में भी आवेदनों की बाढ़ आई है जो चार से पांच के भीतर ही शुरू हुई है।
15 जनवरी तक नर्सरी के लिए चली सामान्य श्रेणी की आवेदन प्रक्रिया के तहत इस बार स्प्रिंगडेल्स, डीपीएस, बालभारती सरीखे नामचीन स्कूलों में जहां एक-एक सीट के लिए 20-20 तक और कहीं कहीं इससे भी ज्यादा दावेदार है वहीं कई नए स्कूलों में यह संख्या 30 से 40 तक है।
राजन अरोड़ा इसकी वजह नए स्कूलों में सिबलिंग व एल्युम्नॉय के मोर्चे पर कम प्रतियोगिता को बताते है उनका कहना है कि जमे-जमाए स्कूलों की अपेक्षा अभी नए स्कूलों इन दोनों ही मोर्चो पर काफी हद तक आभिभावकों को राहत देते है।
अभिभावकों के पक्ष में निर्धारित कैटगरी सिर्फ एल्युम्नॉय व सिबलिंग है और इसके माध्यम से दाखिले को लेकर भी आश्वस्त नहीं है, तभी उन्होंने ज्यादा से ज्यादा स्कूलों में आवेदन किया है।
सर्वे के बाद उभरे हालातों के विषय में जब राजन से पूछा गया तो उनका कहना था कि अब जो स्थिति देखने को मिल रही उसमें कई स्कूलों में सामान्य श्रेणी की हर सीट पर टाई की नौबत देखने को मिलेगी, जिसके चलते लॉटरी का सहारा लेना होगा(शैलेन्द्र सिंह,दैनिक भास्कर,दिल्ली,17.1.11)।
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