कई लोग, जिनमें मेरे कुछ मित्र भी शामिल हैं, बिना किए ही कुछ कामों को असंभव करार दे देते हैं। यह असल में असफलता का अचूक नुस्खा है। आप अपनी क्षमता को पहचानें। तभी निर्णय लें। ऐसा करने से ही जीवन में आनंद आता है। सच तो यह है कि अपनी सीमाएं जानने के लिए एक बार उनका अतिक्रमण करना भी जरूरी है। तभी आप अपनी सीमाओं से वाकिफ होंगे। अगर जिंदगी में कुछ कर दिखाना है तो बहाने और औपचारिकताओं में उलझे बिना सीधे काम में जुट जाएं। काम बेहद जटिल हो, तो उसे छोटे-छोटे हिस्सों में बांट कर पूरा करें। आपको अपनी इस कमजोरी से बाज आना चाहिए, नहीं तो आप स्वयं ही अपने विकास में रोड़ा बनते रहेंगे। कोशिश निरंतर करते रहें, चाहे थोड़ी ही प्रगति हो। इससे मंजिल की ओर बढ़ने की निरंतरता बनी रहेगी।
समस्या तभी पैदा होती है, जब हम बार-बार स्वयं से यह कहते हैं कि फलाना काम हम नहीं कर सकते, जबकि हम प्रयत्न भी नहीं करते। ऐसी स्थिति में हमें अपने व्यवहार में बदलाव लाना ही चाहिए, जो हमारे वश में है। किसी काम से हतोत्साहित महसूस करने के बजाए अपने आपको यह समझाएं कि यह काम आप कर सकते हैं। हो सकता है एक ही बार में न कर पाएं या हो सकता है आपको समय लगे, परंतु आप इसे निश्चय ही कर सकेंगे। सड़क पर गड्ढे हो सकते हैं, पर उन्हें आपकी विजय-यात्रा को बाधित करने की इजाजत न दें।
यदि मनचाही रफ्तार से काम नहीं हो पा रहा तो निराश होने की कोई जरूरत नहीं। हो सकता है आपका तरीका ही गलत हो। किसी भी लक्ष्य को पाने का मात्र एक ही तो रास्ता नहीं होता। यह आप पर निर्भर है कि नए रास्ते खोजें और नई संभावनाओं की तलाश करें। सारीसंभावनाएं ढूंढ़कर सही समय पर सही रास्ते को अख्तियार करें। सिर्फ अच्छा संकल्प ही काफी नहीं, उसका यथाशक्ति क्रियान्वयन भी अनिवार्य है। इसलिए संकल्प-विकल्प से मुक्त होकर काम में जुट जाएं, तभी सफलता प्राप्त होगी। प्रायः लोगों का स्वभाव होता है यथास्थिति में पड़े रहना और बदलाव का प्रतिरोध करना। याद रखिए, यथास्थिति से बदलाव न सिर्फ आपको सफलता प्रदान करेगा, वरन प्रसन्नता भी देगा। स्वयं पर शक करना भी हमारी एक कमजोरी होती है। इससे परहेज करें। किसी समस्या से जूझने के पूर्व अपने भय से मुक्ति पाना सीखें। निराशा सदैव असफलता देती है। अपनी योग्यता और क्षमताओं को परखें और ढूंढें कि वह कौन-सा समय है, जब आप सर्वाधिक क्रियाशील रहते हैं। उसी में प्राथमिकता के अनुसार अपनी समस्याएं सुलझाएं। ध्यान रखें कि सफलता का पात्र सदैव सर्वप्रथम होता है, सफलता उसके बाद आती है। यदि आप कर सकें तो पहले उसे ढूंढ़े जो आपकी सफलता में बाधक बन रहा है। उसके बाद फिर अपना काम करें। खुद को पहचान कर आगे बढ़ने से आप सफल होंगे और खुश रहेंगे(जोगिन्दर सिंह,अमर उजाला,28.12.2010)
बहुत उपयोगी टिपस हैं। धन्यवाद।
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