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09 जनवरी 2011

बार काउंसिल से ऊपर गठित होगा बोर्ड

वकीलों की लाइसेसिंग व कंट्रोलिंग अथॉरिटी बार काउंसिल पर नकेल कसने की तैयारी शुरू हो गई है। कानून एवं न्याय मंत्रालय ने इसके लिए लीगल सर्विसेज बोर्ड गठित करने का फैसला लिया है।

मंत्रालय ने इसके लिए ड्राफ्ट बिल तैयार कर बार काउंसिल ऑफ इंडिया से सुझाव मांगा है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने आगे राज्य बार काउंसिलों से इस पर सुझाव मांगे हैं। यह अलग बात है कि बोर्ड के गठन को लेकर बीसीआई ने विरोध भी दर्ज करवा दिया है। काउंसिल ने इसे वकीलों के हितों की अनदेखी कहा है। अब तक राज्य बार काउंसिल वकीलों के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई करती है।

प्रोफेशनल मिसकंडक्ट की शिकायतों पर काउंसिल आगे अनुशासनात्मक कमेटी को केस रेफर करती है। कमेटी शिकायतों पर फैसला लेती है। वकीलों के खिलाफ कार्रवाई न करने की शिकायतों पर कानून मंत्रालय ने लीगल सर्विसेज बोर्ड गठित करने का फैसला लिया है। सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज बोर्ड के अध्यक्ष रहेंगे। वकीलों के खिलाफ प्रत्येक शिकायत पर बोर्ड जांच करेगा। बोर्ड जांच रिपोर्ट संबंधित बार काउंसिल को देगा। काउंसिल को रिपोर्ट के मुताबिक ही कार्रवाई करनी होगी। बार काउंसिल ऐसा नहीं करेगी तो बोर्ड को उसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की छूट होगी।

बार काउंसिल ने जताया विरोध


दूसरी तरफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया है और बोर्ड की जरूरत से ही इंकार किया है। बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा के चेयरमैन गुरिंदर पाल सिंह ने बोर्ड के गठन का विरोध करते हुए कहा, बीसीआई ने इसका विरोध किया है और इसके पुख्ता कारण भी हैं। बोर्ड गठित कर बार काउंसिलों की पावर खत्म कर दी जाएगी। यही नहीं एक्ट में लीगल प्रोफेशनल की परिभाषा के मुताबिक देश में फॉरेन लॉ फर्म को प्रवेश दे दिया जाएगा। इससे वकीलों के हितों की अनदेखी होगी, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

लोकपाल सुनेंगे केस

वकीलों के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई के लिए चीफ ओम्बड्समैन (लोकपाल) नियुक्तहोगा। इस पद पर सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज नियुक्तकिए जाएंगे। राज्यों की सुनवाई के लिए अलग-अलग लोकपाल नियुक्त किए जाएंगे। लोकपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा। राज्य सरकार लोकपाल कार्यालय के लिए स्टाफ और मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराएगी। 

सरकारी दखल नहीं

लीगल सर्विसेज बोर्ड स्वायत्त इकाई की तरह काम करेगा और इसमें कोई सरकारी दखल नहीं होगा। किसी भी सरकारी विभाग अथवा सरकार के एजेंट के तौर पर बोर्ड काम नहीं करेगा। बोर्ड में सुनवाई के लिए आरंभिक चरण में पच्चीस रुपये की फीस रखी गई है, जो वकालतनामा पर स्टाम्प के जरिए लगानी होगी। बोर्ड आगे चलकर चाहे तो फीस में इजाफा कर सकता है। 

लीगल सर्विसेज बोर्ड के गठन के लिए लीगल प्रेक्टीशनर्स एक्ट 2010 लागू किया जाएगा। यूके पैटर्न पर बोर्ड गठित करने पर विचार किया जा रहा है। यह भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल होगा। 

एम.ए. खान यूसुफी, संयुक्त सचिव-लीगल एडवाइजर, कानून मंत्रालय
(ललित कुमार,दैनिक भास्कर,चंडीगढ़,9.1.11)

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