मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

21 जनवरी 2011

निराश न हों

असफलता का डर तब होता है जब हम अपनी क्षमताएं सीमित कर देते हैं। खुद को सक्षम नहीं समझते या अपनी ओर से ऐसी पहल नहीं करते जिससे हमारी तरक्की हो। अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलें और अगले चरण में प्रवेश करने का प्रयास करें। आपके वर्तमान कार्य आपको वर्तमान स्थिति में ही बनाकर रखेंगे। कुछ पाने के लिए अतिरिक्त प्रयास जरूरी है। ऐसा मात्र आपकी इच्छा से ही संभव होगा।

निराशा के बारे में बात करना खासा कठिन कार्य है। चुनौती इस लिहाज से कि जो लोग इस समस्या से जूझ नहीं रहे, उनको यह बड़ी समस्या नजर नहीं आती और इससे जूझने वालों को इस बारे में सीधे बात करना शायद अच्छा न लगे। वह इसे सही सलाह न मानकर उपदेश भी मान सकते हैं और मदद की पेशकश को दया समझ सकते हैं। इसीलिए इस चुनौती को समझते हुए हम कुछ बातें आपके साथ साझा करना चाहेंगे।

ध्यान रखें कि वर्कप्लेस पर किसी भी कारण से पैदा हुई निराशा बेहद मारक होती है। साथ ही यह जान लें कि निराशा एक ऐसा दौर है जो अगर आया है तो गुजरेगा भी। बस आवश्यकता है तो इसकी कि हम खुद लूजर की तरह से देखना बंद करें। जरूरत है कि हम परिस्थितियों का विश्लेषण किसी अन्य की नजर से करें, तभी हम गलतियां देख पाएंगे।


फोकस करें : कोई निराश क्यों होता है? अमूमन असफलताएं हम में निराशा भरती हैं। इसीलिए हमारी निराशा की जड़ में असफलताएं होती हैं। ध्यान रखें कि असफल होने का एक कारण हमारा अपने काम पर सही फोकस न होना भी होता है। इसीलिए जब भी निराशा आस पास फटकने लगे तो समझ लें कि आप का ध्यान अपने लक्ष्यों या काम से भटकने लगा है। अपने ध्यान को न बंटने दें। वर्कप्लेस पर अपने काम पर फोकस करें।

नकारात्मक विचारों से दूर रहें: खुद पर नकारात्मक विचारों को हावी न होने दें। खुद के लिए ऐसे पैमाने न बनाएं जो अपनी क्षमताओं को कम या ज्यादा करके आंकते हों।

निराशा यानी सीखने का अवसर: ध्यान रखें कि असफलता और निराशा हमें नई बातें सीखने का अवसर देती हैं। इसीलिए इस अवसर को भी गवाएं नहीं और सकारात्मक सोच के साथ इसे अपने जीवन का एक शिक्षा देने वाला अध्याय मानें।
(हिंदुस्तान,दिल्ली,12.1.11)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।