हर साल दसवीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में छात्रों का इजाफा हो रहा है। बच्चों की संख्या बढ़ने के कारण बोर्ड परीक्षा को लेकर सीबीएसई पर भी दबाव बढ़ता जा रहा था। लेकिन दसवीं में वैकल्पिक व्यवस्था से सीबीएसई को इस साल करीब साढ़े पांच लाख बच्चों के भार से निजात मिली है।
दसवीं की बोर्ड परीक्षा के आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल इसमें करीब एक लाख बच्चों की बढ़ोतरी हो रही थी। इस साल देश भर में दसवीं कक्षा में कुल 10 लाख 3 हजार बच्चे हैं। इनमें से केवल 4 लाख 66 हजार 774 बच्चे ही बोर्ड की परीक्षा में बैठेंगे। वैकल्पिक व्यवस्था होने के कारण इस साल कुल 5 लाख 36 हजार 226 बच्चों ने स्कूल की दसवीं की परीक्षा को चुना है।
दसवीं की बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक कर दिए जाने का बड़ा फायदा छात्रों के साथ सीबीएसई को भी हुआ है। इस बार करीब साढ़े पांच लाख बच्चे बोर्ड की परीक्षा देंगे, वहीं बीते साल 9 लाख 2 हजार बच्चों ने बोर्ड की परीक्षा दी थी। निस्संदेह इससे बोर्ड को बड़ी राहत मिली है। इस बार करीब साढ़े चार लाख छात्रों के परीक्षा में नहीं बैठने से बोर्ड पर तैयारियों का दबाव कम हुआ है। इस साल 12वीं की परीक्षा देने वाले कुल छात्रों की संख्या7 लाख 70 हजार है।
आंकड़ों के अनुसार, सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रहे 90 फीसदी छात्रों ने स्कूल की परीक्षा को ही विकल्प के तौर पर चुना है, जिन्हें दसवीं के बाद किसी अन्य स्कूल या बोर्ड में दाखिला नहीं लेना था। वहीं दसवीं का बोर्ड शत प्रतिशत बच्चे वहीं दे रहे हैं, जो केवल दसवीं तक के स्कूल में पढ़ रहे हैं। देश भर में ऐसे स्कूलों की संख्या 2 हजार के करीब है। जबकि देश भर में सीबीएसई के कुल स्कूलों की संख्या 10 हजार 97 है। सीबीएसई अधिकारियों का कहना है कि इस बार वैकल्पिक व्यवस्था से बोर्ड पर दबाव कम हुआ है(दैनिक जागरण,दिल्ली,8.1.11)।
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