देश के बेहतरीन आईआईटी संस्थानों में पढ़ाई करना लोगों के लिए बहुत ही जल्द महंगा पड़ सकता है। आईआईटी बांबे के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन अनिल काकोडकर की अध्यक्षता में की गई एक मीटिंग में सभी संस्थानों को आर्थिक रूप से निर्भर बनाने के उद्देश्य से पांच गुना फीस बढ़ाने की सिफारिश की गई। आईआईटी की स्वायत्तता और विकास का एक रोड मैप तैयार करने के लिए इस कमिटी का गठन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा किया गया था। इस मीटिंग में विचार किया गया कि एक बड़ी स्वायत्तता के लिए आईआईटी संस्थानों को आईआईएम संस्थानों के रास्ते पर चलना चाहिए। उन्हें सरकारी सहायता ना देकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है और यह तभी संभव है जब अंडरग्रेजूएट लेवल पर ज्यादा फीस ली जाए। जो लोग इतनी ज्यादा फीस नहीं दे सकते, उन्हें कम इंट्रेस्ट वाले लोन और स्कॉलरशिप के रूप में सरकारी मदद लेनी चाहिए। यदि सरकार ने कमिटी की सिफारिश को माना तो देश के 15 आईआईटी संस्थानों के बीटेक कोर्सों की फीस मौजूदा 50,000 से बढ़कर 2.2-2.5 लाख रुपये हो सकती है।
आईआईटी की तुलना में सबसे बड़ी स्वायत्तता वाले आईआईएम संस्थान पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट से एक साल की फीस 3 लाख से 6.5 लाख के बीच में चार्ज करते हैं। काकोडकर कमिटी के अनुसार आईआईटी संस्थानों की आर्थिक निर्भरता उसके स्वायत्तता के रास्ते में आ रही है और यह तब से हो रहा है जब से सरकार ने आईआईटी स्टूडेंट्स के एज्यूकेशन के खर्चे उनकी फीस में छूट करके और फैकल्टी सैलरी के रूप में किया है। फीस में बढ़ोत्तरी सभी आईआईटी संस्थानों को आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बना सकती है। आईआईटी संस्थान बिना सरकार से मदद की गुहार लगाए आईआईएम संस्थानों की तरह अधिक से अधिक धन पैदा कर पाने में सक्षम होंगे, जिससे वे अपनी फैकल्टी को सैलरी भी दे पाएंगे। साथ ही साथ वे नए कोर्सिस और नए उपक्रम भी ला पाएंगे। इसके बावजूद कमिटी पोस्टग्रेजुएट और डॉक्टरेट की फीस बढ़ाए जाने के पक्ष में नहीं है। कमिटी का मानना है कि यदि ऐसा हुआ तो स्टूडेंट्स इंजीनियरिंग में रिसर्च करने और हायर स्टडीज करने के लिए हतोत्साहित हो सकते हैं जिससे भविष्य में फैकल्टी की कमी हो सकती है।
(नवभारत टाइम्स,मुंबई,20.1.11)
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