नए ऐकडेमिक ईयर से शहर के पहली कक्षा से लेकर बारहवीं तक के सभी स्कूली बच्चे लेसन्स को पढ़ने के बजाय अपने दिमाग को ऐक्टिवेट कर पाएंगे। महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एज्यूकेशन स्टेट करिकुलम फ्रेमवर्क ड्राफ्ट को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है और जल्द ही ड्राफ्ट के मुताबिक सिलेबस तैयार करके उसे 2012-2013 से लागू कर दिया जाएगा। इस सिलसिले में राज्य बोर्ड ने इस ड्राफ्ट को सही रूप देने के उद्देश्य से एक्सपर्ट की एक मीटिंग बुलाई थी। इस मीटिंग में 50 लोग मौजूद थे जिनमें प्रसिद्ध वैज्ञानिक जयंत नारलीकर, मशहूर मराठी लेखक राजन गवस, एज्यूकेशन रिसर्चर किशोर दारक और शहर के कई अन्य रिसर्चर शामिल थे। बोर्ड ने नैशनल करिकुलम फ्रेमवर्क के तहत एससीएफ को तैयार किया और सितंबर 2010 में पहले ड्राफ्ट को रिलीज भी कर दिया था।
बोर्ड की एक अधिकारी का कहना था कि शिक्षा से जुड़े लोगों के फीडबैक लेने के लिए राज्य ने शहर के कई जगहों पर वर्कशाप भी की थी, इसके अलावा स्टेट बोर्ड ने मिले सभी सुझावों को एक साथ एकत्रित कर उस पर विचार किया। इसी प्रकार की एक कोशिश स्टेट काउंसिल फॉर एज्यूकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग ने की थी, जिसका उद्देश्य लोगों के सुझावों को प्राप्त कर उसकी मदद से प्राइमरी लेवल का सिलेबस तैयार करना था। अब हम एक संयुक्त मीटिंग करेंगे जिसमें सरकारी अधिकारियों के अलावा एक्सपर्ट्स भी अपने सुझाव देंगे। एससीएफ ड्राफ्ट में हम कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन भी करेंगे जो सरकार को जल्द ही सौंप दी जाएगी। हमें आशा है कि हम यह नया सिलेबस 2012-2013 से लागू कर पाएंगे(नवभारत टाइम्स,मुंबई,20.1.11)।
वैसे हिन्दुस्तान में रट्टाफिकेशन की संसकृति प्राइमरी स्कूल से लेकर आईआईटी तक इतनी बुरी तरह व्याप्त है कि उसे हटाने के लिए पचास साल भी काफी नहीं होंगे.. पर हाँ ऐसे क़दमों से कुछ परिवर्तन तो आयेगा ही.
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