उच्च शिक्षा में सुधारों व विस्तार की कोशिशों के बीच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटी) को और स्वायत्तता की राह खुल सकती है। लेकिन, इस बदलाव से छात्रों व अभिभावकों पर खर्च का बोझ भी बढ़ने के आसार हैं। आइआइटी काउंसिल में सहमति बनी तो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की मौजूदा फीस में पांच गुना तक इजाफा हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक आइआइटी को और स्वायत्तता व बेहतर विकास के लिए परमाणु वैज्ञानिक व आइआइटी मुंबई के चेयरमैन डॉ. अनिल काकोदकर के नेतृत्व में गठित पैनल शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट देने जा रहा है। बताते हैं कि उसी दिन होने वाली आइआइटी काउंसिल की बैठक में पैनल की सिफारिशों पर चर्चा भी हो सकती है। सूत्रों की मानें तो काकोदकर पैनल आइआइटी में स्नातक (ग्रेजुएट) स्तर पर फीस बढ़ाए जाने के पक्ष में है। मौजूदा फीस 50 हजार रुपये के आसपास है, जो बढ़कर 2.10 से 2.50 लाख तक हो सकती है। तर्क यह है कि इससे सरकार पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की निर्भरता कम होगी जबकि संस्थान के कामकाज में और आजादी का रास्ता खुलेगा। जाहिर है कि फीस बढ़ने से छात्रों व अभिभावकों पर खर्च का बोझ बढ़ेगा। सूत्रों का हालांकि कहना है कि सस्ती ब्याज दरों व सब्सिडी पर कर्ज की उपलब्धता के चलते पढ़ाई का आसान रास्ता खुला रहेगा। इतना ही नहीं, छात्रवृत्तियों की संख्या बढ़ाकर भी इसकी भरपाई होती रहेगी। बताते हैं कि उच्च शिक्षा में बड़ा जोर शोध को बढ़ावा देने पर है। इसके मद्देनजर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर फीस की बढ़ोतरी नहीं की जा सकती है। आइआइटी काउंसिल की वर्ष 2009 में हुई बैठक में आइआइटी की स्वायत्तता व भविष्य में उनके और विकास व विस्तार का रोडमैप तैयार करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने डा. काकोदकर की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया था। आइआइटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सुधार के लिए टी. रामास्वामी की अगुआई में एक अन्य समिति भी गठित की गई थी(दैनिक जागरण,दिल्ली,19.1.11)।
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