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10 जनवरी 2011

मध्यप्रदेशःकर्मचारी संगठन फिर आंदोलन की राह पर

प्रदेश सरकार कर्मचारियों के साथ छलावा कर रही है। प्रदेश के करीब पौने पांच लाख कर्मचारियों का सरकार ने जल्द निराकरण नहीं हुआ, तो 2011 के सितंबर-अक्टूबर में अनिश्चितकालीन हड़ताल तय है। स्वर्णिम मध्यप्रदेश का सपना संजोए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में कर्मचारियों की कई वर्षो से लंबित मांगों का निराकरण नहीं किया जा रहा है। सबसे ज्यादा परेशान दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हो रहे है। करीब 50 हजार दैवेभो कर्मचारियों में पांच हजार का नियमितिकरण हो चुका है। न्यायालय के आदेश के बाद भी करीब 45 हजार दैवेभो को नियमित नहीं किया जा रहा है। इससे इन कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गई है। कर्मचारियों के लिए बने कर्मचारी कल्याण प्रकोष्ठ दयनीय अवस्था में पड़ा हुआ है। इसमें अभी तक किसी भी नियुक्ति नहीं की गई है। सरकार द्वारा कर्मचारियों को पांच किश्तों में दी गई एरियर की राशि से बड़ा घाटा हुआ है। सरकार उक्त राशि को जीपीएफ में एक साथ देती, तो इससे कर्मचारियों को ब्याज का फायदा होता। कई निगम मंडलों में अभी तक पांचवां व छठवां वेतनमान ही लागू नहीं किया गया है। अग्रवाल वेतन आयोग की रिपोर्ट को सरकार ने तो ऐसा दबाया जैसे यह बनी ही नहीं है। कर्मचारी कई बार रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग कर चुके है। बावजूद उसके अभी तक रिपोर्ट जारी नहीं की गई है। आसानी से नहीं मिल रही जीपीएफ की राशि : कर्मचारियों को अपनी जीपीएफ राशि ही आसानी से नहीं मिल रही है। कर्मचारियों को पूर्व में पासबुक में जमा जीपीएफ की राशि आरहण व संवितरण अधिकारी के प्रमाण पत्र व विभागाध्यक्ष की स्वीकृति के बाद आसानी से दे दी जाती थी। इस समय तक एजी (महालेखागार कार्यालय) की स्लीप लगती थीं, लेकिन बाध्यता नहीं थी। 23 दिसंबर 2008 को वित्त विभाग ने जीपीएफ के नियमों में संशोधन किया। नए नियम में कर्मचारियों को जीपीएफ की राशि एजी (महालेखागार कार्यालय) की स्लीप लगाने के बाद ही मिलेगी। यहीं से कर्मचारियों की परेशानी बढ़ गई। वित्त विभाग ने आदेश जारी कर दिए, लेकिन एजी के पास कर्मचारियों की पासबुक की सही जानकारी नहीं पहुंची। एजी के पास हजारों कर्मचारियों की पासबुक की जानकारी त्रुटिपूर्ण है। कर्मचारियों की जीपीएफ की पासबुक में लाखों रुपए होने के बाद भी एजी के पास उपलब्ध पासबुक में कर्मचारियों की राशि नगण्य है। किसी विभाग के कर्मचारी जब अपनी जीपीएफ की जमा राशि निकालने के लिए आहरण व संवितरण अधिकारी से प्रमाण पत्र व विभागाध्यक्ष की स्वीकृति के बाद जिला कोषालय राशि निकालने पहुंचते है, तो उन्हें एजी की स्लीप लगाने की बात कही जाती है। जबकि एजी की पासबुक में राशि नहीं होती। इससे कर्मचारियों को स्वयं की राशि देने से ही मना कर दिया जाता है। राशि नहीं मिलने से कर्मचारियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश में कर्मचारियों की स्थिति : प्रदेश भर में कुल कर्मचारियों की संख्या 8,41,216 है। इसमें शासकीय 4,63,818, कार्यभारित कर्मचारी 25,187, आकस्मिक निधि कर्मचारी 48,548, नगरीय स्थानीय निकाय 68,524, ग्रामीण स्थानीय निकाय 11,272, विश्वविद्यालय 8,645, कोटवार 35,261 शामिल हैं। अब नहीं दिखती कर्मचारी नेताओं की दबंगई : कर्मचारी संगठनों के नेताओं की अस्सी-नब्बे के दशक तक एक आवाज पर सरकार व प्रशासनिक हलकों में उथल-पुथल मच जाती थीं, लेकिन लगता है कि अब वह दौर समाप्त हो गया है। नए कर्मचारी नेताओं की दबंगई अब नहीं दिखती। पुराने दौर में कर्मचारियों की कोई मांग भी उठती थी तो सरकार स्वयं मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों को बुलाकर बात करती थी। वर्तमान में कर्मचारियों की मांग उठने पर सालों-साल धरने प्रदर्शन करने के बाद भी कुछ नहीं मिल रहा है। इतना ही नहीं वर्तमान में कर्मचारी संगठनों के आपसी विवाद का फायदा तो कुछ नेता बखूबी उठा रहे हैं। वर्ष 1990 के पूर्व तक शासकीय मान्यता प्राप्त तीन कर्मचारी संगठन हुआ करते थे। इसमें मप्र राजपत्रित अधिकारी संघ, मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ व लघुवेतन कर्मचारी संघ था। उक्त तीन कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों की एक आवाज पर सारा कर्मचारी जगत एकत्रित हो जाया करता था। उस दौर में मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष नारायण प्रसाद शर्मा व सत्यनारायण तिवारी कुछ ऐसे नाम थे, जिनके आगे सरकार का हर नुमाइंदा सलीके से पेश आता था। लघु वेतन कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष देवी प्रसाद शर्मा, राज्य कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष गणेश दत्त जोशी व जिले में उदयनारायण त्रिवेदी, सुरेश जाधव कुछ ऐसे नाम थे, जो कर्मचारी जगत में सक्रिय थे(नीरज गौड़,दैनिक जागरण,भोपाल,10.1.11)।

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