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20 जनवरी 2011

दिल्ली में नर्सरी दाखिला : सरकार का गुस्सा मंजूर पर कोटा नहीं मानेंगे निजी स्कूल

25 फीसदी गरीब कोटे के तहत नर्सरी दाखिला प्रक्रिया में अपनी लॉटरी लगने का इंतजार कर रहे अभिभावकों की राह अब मुश्किल होने जा रही है। इसका कारण है निजी स्कूलों का गरीब कोटे के तहत दाखिले करने से इनकार कर देना।

निजी स्कूलों की सात प्रतिनिधि एसोसिएशन ने बुधवार को एकमत होकर फैसला किया है कि मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून 20009 के तहत 25 प्रतिशत बच्चों को फ्रीशिप कोटे में दाखिला नहीं दिया जाएगा।

निजी स्कूलों की आपत्ति का एक अन्य कारण सरकार की ओर से हाल ही में दिया गया वह निर्देश भी है कि जिसके तहत गरीब कोटे में ही एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग को भी शामिल कर दिया गया है, जबकि इस वर्ग के लिए सालाना आय का निर्धारण चार लाख रुपए निर्धारित किया गया है।

स्कूलों का साफ कहना है कि इस फैसले के बाद सरकार जो कार्रवाई करेगी उसके लिए हम तैयार हैं। स्कूल संगठनों ने अपने फैसले की जानकारी शिक्षा निदेशक, शिक्षा सचिव, शिक्षा मंत्री, व मुख्यमंत्री को भेज दी है।

निजी स्कूलों की एसोसिएशन दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन, फेडरेशन ऑफ पब्लिक स्कूल, फोरम ऑफ माइनारिटी स्कूल, फोरम ऑफ क्वालिटी एजुकेशन, कोर्डिनेशन कमेटी ऑफ पब्लिक स्कूल, काउंसिल ऑफ पब्लिक स्कूल, ट्रांस यमुना पब्लिक स्कूल फेडरेशन की और से सर्वसम्मति से लिए गए फैसले में स्पष्ट किया गया है कि यदि गरीब कोटे को 25 फीसदी दाखिला दिया जाता है तो 75 फीसदी बच्चों की फीस में 25-40 फीसदी की बढ़ोतरी करना अनिवार्य हो जाएगा।


सरकार स्कूलों पर इस वर्ग को मुफ्त वर्दी, जूते, जुराब, कॉपी किताबें देने का भी दबाव बना रही है, जिसे निजी स्कूल सिरे से नकार रहे हैं। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आर.सी जैन ने बताया कि भले ही इस वर्ग की दाखिला प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है, लेकिन दाखिला नहीं दिया जाएगा। 


उन्होंने कहा कि सरकार ने यह भी तय नहीं किया है कि इस वर्ग को दाखिला देने पर सरकार की और से कितना फीसदी भुगतान किया जाएगा। स्कूल एसोसिएशन इस बात को लेकर भी परेशान हैं कि इस वर्ग की 25 फीसदी सीटों के लिए सीटों से कई गुना फॉर्म प्राप्त हो रहे हैं। 

उनका सवाल है कि सरकार को इस बात की जांच करानी चाहिए कि क्या इतने लोग आर्थिक पिछड़े वर्ग के तहत आ रहे हैं या फिर सामान्य वर्ग के लिए अभिभावकों की और से गलत आय प्रमाणपत्र देकर इस वर्ग के तहत आवेदन किए जा रहे हैं। 

उन्होंने साफ तौर पर कहा कि सरकार ने अगर दाखिले के लिए लगातार दबाव बनाया तो स्कूलों को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया जाएगा। जिसका सीधा असर स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों पर ही पड़ेगा।

नहीं रुकी मनमानी
राजधानी में जारी नर्सरी की दाखिला प्रक्रिया को लेकर पब्लिक स्कूलों की मनमानी का सिलसिला लगातार जारी है। जो स्कूल जितना नामचीन है, वह उतनी ही ज्यादती करने में जुटा है। ताजा उदाहरण डीपीएस, मथुरा रोड का है जिसने दाखिले के लिए दास्तावेजों की जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 

20 से 25 जनवरी के बीच अंजाम दी जाने वाली इस प्रक्रिया में सामान्य श्रेणी की 120 सीटों के लिए 292 उम्मीदवारों को बिना चयन का आधार बताए बुलाया गया है। स्कूलों की मनमानी का दूसरा उदाहरण रोहिणी के गीतारतन जिंदल स्कूल ने पेश किया है। 

यहां गरीब कोटे के तहत आवेदन की अंतिम तिथि 20 जनवरी होने के चलते जारी आवेदन प्रक्रिया के अन्तर्गत अभिभावकों को रजिस्ट्रेशन स्लिप देने से साफ इनकार किया जा रहा है। 

एजुकेशन फोर ऑल के संस्थापक सुमित वोहरा कहते हैं कि डीपीएस मथुरा रोड की ओर से जारी सूची के बाद से ही लगातार वे अभिभावक परेशान हैं जिनका नम्बर दास्तावेजों की जांच के लिए जारी सूची में नहीं आया है। उनका कहना है कि स्कूल की सूची में कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि आखिर चुने गए उम्मीदवारों को कितने प्वाइंट मिले हैं। 

साफ है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। सुमित वोहरा कहते हैं कि स्कूल की ओर से अंजाम दी जा रही प्रक्रिया कहीं न कहीं सवाल खड़े करने वाली है और हर अभिभावक को हक है कि वह अपने बच्चे के चुने जाने या न चुने जाने का कारण जाने। 

स्कूल ने सामान्य श्रेणी के साथ-साथ स्टाफ कोटे की 12 सीटों के लिए नौ उम्मीदवारों की सूची जारी की है। स्कूलों की मनमानी अन्य दो मामले शिक्षा निदेशालय के समक्ष सीधे पहुंचे हैं। इसमें गीतरतन जिंदल स्कूल पर गरीब कोटे के आवेदन करने पर पंजीकरण स्लिप प्रदान न करने का आरोप लगा है।

जबकि, दूसरे प्रकरण में जीडी गोयनका स्कूल, रोहिणी पर आरोप है कि वहां आवेदन फॉर्म के एवज में 300 रुपए लिए गए और उसकी कोई रसीद जारी नहीं की गई है। दोनों ही मामलों में निदेशालय की ओर से गाइडलाइंस की दुहाई देते हुए स्कूल को सुधर जाने की नसीहत देते हुए मामले को सम्बंधित उपशिक्षा निदेशक के सुपुर्द कर दिया गया है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,20.1.11)।

दैनिक जागरण की रिपोर्टः
राजधानी के पब्लिक स्कूलों ने अब सरकार को गरीबी कोटे में दाखिला देने पर अंगूठा दिखाते हुए आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है। जिन्होंने बैठक कर यह फैसला लिया है कि फ्री-शिप के तहत दाखिला नहीं किया जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो स्कूलों को 40 फीसदी तक फीस बढ़ानी होगी, जो अभिभावकों के साथ नाइंसाफी है। बैठक में यह भी फैसला लिया गया है कि सरकार अगर निजी स्कूलों पर कोई दबाव बनाती है तो स्कूल अनिश्चित काल के लिए बंद किए जाएंगे। बुधवार को निजी स्कूलों की प्रतिनिधि 5 प्रतिनिधि सभाओं ने बैठक की। जिसमें दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल्स मैनेजमेंट एसोसिएशन (डीएसपीएसएमए), फोरम ऑफ माइनॉरिटी स्कूल्स, फोरम ऑफ क्वालिटी एजुकेशन, को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ पब्लिक स्कूल्स, काउंसिल ऑफ पब्लिक स्कूल्स, ट्रांस यमुना पब्लिक स्कूल्स फेडरेशन के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। डीएसपीएसएमए के अध्यक्ष आर.सी.जैन ने बताया कि बैठक के बाद फैसले की सूचना मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह लवली, दिल्ली के शिक्षा निदेशक और शिक्षा सचिव को भी भेजी जा चुकी है। बैठक में एकमत से यह फैसला लिया गया कि हम अपने स्कूलों में राइट टू फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट-2009 के तहत 25 फीसदी बच्चों को फ्री शिप में दाखिला नहीं देंगे। इसलिए इस श्रेणी में आने वाले किसी भी बच्चे को मुफ्त वर्दी, जूते जुराब, कॉपी किताबें देने का प्रश्न ही नहीं उठता। पहले ही छठे वेतन आयोग के बाद बढ़ी फीस पर अभिभावक नाराज हैं। ऐसी स्थिति में 25 फीसदी बच्चों को मुफ्त पढ़ाने से स्कूलों में 75 फीसदी पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का गुस्सा स्कूल प्रबंधन सहन नहीं कर पाएंगे। सरकार को चाहिए कि वह सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार करे। लेकिन वह निजी स्कूलों की स्थिति को भी बिगाड़ने पर तुली हुई है। दिल्ली में 1950 मान्यता प्राप्त स्कूलों में से 250 स्कूल ही सरकार द्वारा सस्ती दामों पर उपलब्ध करायी गई जमीनों पर चलते हैं। बाकी 1700 स्कूल निजी भूमि या किराये के भवनों में चलते हैं। जिनमें करीब 8 लाख 56 हजार बच्चे पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार दमनात्मक रवैया अपनाती है तो स्कूल अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। जिसकी जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की होगी। वहीं फेडरेशन ऑफ पब्लिक स्कूल के अध्यक्ष आर.पी.मलिक कहते हैं कि वह इस निर्णय में अन्य फेडरेशनों के साथ नहीं हैं। क्योंकि इस बारे में वह पहले ही शिक्षा निदेशालय को लिखित में सुधार की अपील कर चुके हैं। हमें शिक्षा निदेशालय के निर्णय का तो इंतजार करना चाहिए। उसके बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए। इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष जी.पी.गुप्ता कहते हैं कि वह सीबीएसई को यह लिखकर दे चुके हैं कि देश में अगर सरकार को नौ हजार स्कूल खोलने पडे़ तो 30 हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। हर बच्चे पर 2150 रुपये प्रतिमाह का खर्च आएगा वो अलग। ऐसे में राजस्थान व यूपी की तर्ज पर 400-500 रुपये तक का भत्ता तय करना गलत है। इससे स्कूलों की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी। अभी भी स्कूल सिबलिंग के तहत बच्चों की फीस तो माफ करते ही हैं। फ्री-शिप कोटे से फीस बढ़ेगी और अभिभावक इसका विरोध करेंगे। ऐसे में दिल्ली के निजी स्कूलों की समितियों का निर्णय ठीक है। दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल्स मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आर.सी.जैन कहते हैं कि फ्री शिप कोटा लागू होने से स्कूलों में फीस देकर पढ़ने वाले 75 फीसदी विद्यार्थियों की फीस में 25 से 40 फीसदी का इजाफा अनिवार्य हो जाएगा।

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