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09 जनवरी 2011

जनजातीय क्षेत्रों के लिए अलग कैडर की मांग

भारत में केवल आठ प्रतिशत आबादी जनजातीय क्षेत्र में रहती है, लेकिन 95 फीसदी आतंकवाद और विद्रोह भी इसी क्षेत्र में है। यह क्षेत्र अशिक्षा, पिछड़ापन, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, एड्स और भ्रष्टाचार से पीडि़त है। इसका प्रमुख कारण इन क्षेत्रों की उपेक्षा है। इसके लिए आवश्यक है कि जनजातीय क्षेत्रों के लिए अधिकारियों का अलग से कैडर बनाया जाए। भाजपा नेता और सांसद तरुण विजय ने शनिवार को वनवासी विद्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में यह बात कही। उन्होंने कहा कि देश में पहली बार जनजातीय क्षेत्रों में फैले आतंकवाद और विद्रोह पर समेकित चर्चा की जा रही है। तीन दिन तक चलने वाली इस चर्चा में 12 राज्यों के 42 से अधिक जनजातीय सांसद व विधायक शामिल हो रहे हैं। इनमें 12 जनजातीय कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं। तीन दिन की चर्चा के बाद एक राष्ट्रीय जनजातीय नीति का मसौदा तैयार किया जाएगा, जिसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के समक्ष रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों के प्रति आमतौर पर उपेक्षापूर्ण भाव रहता है। इसलिए इन क्षेत्रों में अधिकारियों को पनिशमेंट पोस्टिंग पर भेजा जाता है। इसके चलते अधिकारी इन क्षेत्रों में विकास योजनाओं को चलाने की बजाय टाइम पूरा करने में लगे रहते हैं। इसलिए जनजातीय क्षेत्र के लिए अलग से आइएएस और आइपीएस का कैडर बनाया जाना चाहिए। इसमें ऐसे अधिकारियों को शामिल किया जाना चाहिए जो जनजातीय क्षेत्रों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों। छत्तीसगढ़ के ग्राम पंचायत विकास मंत्री राम विचार नेताम ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों में सरकार लगातार विकास कार्य चलाना चाहती है,लेकिन नक्सलवादियों के चलते कई बार ऐसा करना मुश्किल हो जाता है(दैनिक जागरण,देहरादून,9.1.11)

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