हिन्दी किसी भी भाषा से कमतर नहीं है। भले ही शासन और कुलीन वर्ग अंग्रेजी की डुगडुगी बजाता रहे लेकिन हिन्दी अपना विस्तार करती जा रही है। हिन्दी अंग्रेजी की गुलाम नहीं है। हिन्दी बाजार की बड़ी भाषा है। अंग्रेजी का गुणगान करने वालों को आखिरकार अपना उत्पाद बेचने के लिए हिन्दी की ही जरूरत पड़ती है। कॉरपोरेट जगत कमाता तो हिन्दी से है लेकिन भौंकता है अंग्रेजी में।
यह कहना है कि पत्रकार व साहित्यकार सुधीश पचौरी का। जयपुर साहित्योत्सव के दूसरे दिन डिग्गी पैलेस के फ्रंट लॉन में आयोजित 'ऎसी हिन्दी कैसी हिन्दी' संवाद कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह बात कही। कार्यक्रम में पत्रकार व साहित्यकार मृणाल पाण्डे, मशहूर गीतकार प्रसून जोशी और पत्रकार रवीश कुमार भी मौजूद थे। कार्यक्रम की शुरूआत में एस निरूपम ने हिन्दी के बिगड़ते स्वरूप पर चिंता जताते हुए कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों का परिचय दिया।
हर जगह सजती है हिन्दी की महफिल
पचौरी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव भले ही अंग्रेजी का मेला हो लेकिन हिन्दी के लेखकों को इसमें बुलाना ही साबित करता है कि हिन्दी में भी दम हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी आनंद की भाषा है। हिन्दी अंग्रेजी की गुलाम नहीं है। उन्होंने हिन्दी को अप्सरा बताते हुए कहा कि इसकी महफिल हर जगह सजती है। चाहे वह साहित्य में हो, फिल्म हो या फिर विज्ञापन। हर जगह हिन्दी का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
हिन्दी को किसी से खतरा नहीं
पचौरी ने कहा कि हिन्दी को किसी से खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि सौ साल पहले उर्दू से हिन्दी को खतरे की बातें कही जाती थी लेकिन हिन्दी ने उर्दू के शब्दों को अंगीकार कर खुद को समर्ध कर लिया। हिन्दी की खासियत ही यही है कि वह अन्य भाषाओं को शब्दों को स्वीकार कर खुद को समृद्ध करती रहती है। इसी सरल स्वभाव के कारण हिन्दी अपना विस्तार करती जा रही है। हालांकि उन्होंने माना कि हिन्दी को हिन्दी को सरकारी संरक्षण की जरूरत है। उन्होंने हिंदी के बिगड़ते स्वरूप पर कहा कि शास्त्र की भाषा सिर्फ लेखक के लिए होती है आमजन के लिए नहीं। हिन्दी साहित्य को रोमन लिपी में लिखे जाने की कोशिश पर पचौरी ने कहा कि ऎसा करने वाले की लुटिया डुब जाएगी। पहले तो कोई प्रकाशक इसके लिए तैयार नहीं होगा और अगर हो भी गया तो उसका पैसा डुबना तय है।
गालियां अशिष्टता का परिचायक
मृणाल पाण्डे ने हिंदी को संस्कार की भाषा बताते हुए कहा कि हिन्दी का स्वरूप भले ही बिगड़ रहा हो लेकिन वह नए स्वरूप में सामने अपना आकार बनाती जाती है। हिंदी साहित्य व ब्लॉगिंग में बढ़ते गालियों के प्रचलन पर मृणाल पाण्डे ने कहा कि गालियां अशिष्टता का परिचायक है। इन्हें किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि व्यक्ति गाली तब देता है जब उसके पास कोई शब्द नहीं होता जबकि सुलझा हुआ या शिष्ट आदमी गाली दिए बिना भी अपनी बात कह सकता है। उन्होंने कहा कि गालियां समाज के शोषित वर्ग पर ही चोट करने के लिए दी जाती है खासतौर पर महिलाओं व दलितों के खिलाफ। उन्होंने कहा कि हिन्दी पट्टी की ज्यादातर गालियां इन्हीं वर्ग पर ही होती है।
हिंदी में शब्दों की कमी
प्रसून जोशी ने हिंदी में शब्दों की कमी का जिक्र करते हुए विज्ञापन जगत के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने भी कहा कि हिंदी को किसी भी अन्य भाषा से खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में तकनीक भाषाओं की दूरियों को खत्म कर देगी।
हिन्दी चैनल को बताया टिकर विजन
टेलीविजन पत्रकार रवीश कुमार ने टीवी चैनलों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि हिंदी के समाचार चैनल टिकर विजन बढ़ते जा रहे है। उन्होंने टीवी चैनलों में फटाफट खबरों के बढ़ते प्रचलन पर कड़ा प्रहार करते हुए ब्रेकिंग न्यूज को भस्मासुर बताया(राजस्थान पत्रिका,जयपुर,22.1.11)।
हिंदी इमानदारों की भाषा है........जबकि अंग्रेजी बेईमानों की भाषा है.....
जवाब देंहटाएंमैं हिंदी का सम्मान क्यूँ न करूँ?
जवाब देंहटाएंhttp://nehakikalamse.blogspot.com/2010/11/blog-post_7540.html