जब यूनिवर्सिटी अधिकारी आपकी बात न सुनें तो आप क्या करेंगे? कुलाधिपति यानी राज्यपाल महोदय से गुहार करेंगे। हिंदी में एमफिल कर रहे मुंबई विवि के तीन छात्रों ने हताश होकर यही कदम उठाया है। थीसिस जमा होने के डेढ़ साल बाद भी एमफिल डिग्री पाने और पीएचडी रजिस्ट्रेशन से वंचित इन छात्रों ने राज्यपाल महोदय को पत्र लिखकर अपने साथ हो रहे अन्याय की सूचना दी है। ये और बात है कि सात महीने बीत जाने के बावजूद पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
छात्र मनोहर मिश्रा और संतोष सिंह ने एनबीटी को बताया, 'हमने 2008 में एमए किया और उसी वर्ष एमफिल में प्रवेश लेकर अक्टूबर 2009 में थीसिस भी जमा कर दी। इस पर एग्जामिनर नियुक्त करने में विवि ने देरी की। अगस्त 2010 में हुई आरआरसी (रिसर्च रिकग्निशन कमिटी) बैठक में एग्जामिनर तय किए गए लेकिन अब तक डिग्री नहीं मिल सकी है। मार्च 2010 में हमने पीएचडी के लिए आवेदन किया, लेकिन आरआरसी ने हमारा रजिस्ट्रेशन भी नहीं किया।' आशा दुबे भी एक साल से अधिक समय से रजिस्ट्रेशन की उम्मीद में बैठी हैं।
यही नहीं, 14 अन्य छात्रों का भी, जिन्होंने 2009 में हिंदी में एमए किया, पीएचडी रजिस्ट्रेशन न होने से मायूस बैठे हैं। सबका एक-एक साल बर्बाद हो गया है। गौरतलब है, यूजीसी मई 2009 के नियमानुसार, पीएचडी करने के लिए नेट या सेट पास होना जरूरी है या फिर एमफिल डिग्री होना। लेकिन मुंबई विवि में अगस्त 2010 की आआरसी मीटिंग होने तक यह नियम नहीं लागू हुआ था। छात्रों और हिंदी विभाग के सूत्रों का दावा है कि इस मीटिंग में अन्य विषयों में रजिस्ट्रेशन किया गया जबकि हिंदी की वजह से उन्हें प्रताडि़त किया जा रहा है।
छात्रों का कहना है, 'हमें समय पर एमफिल डिग्री नहीं मिली, इसमें गलती विवि की है। वैसे एमफिल न भी हो, तो भी हम पीएचडी करने के पात्र हैं। हम विवि के चक्कर लगाकर थक गए। हारकर राज्यपाल महोदय को पत्र लिखा लेकिन अब तक न्याय नहीं मिला है। एमफिल जमा करने के बाद हम विवि के छात्र भी नहीं रहे। हमारा भविष्य अंधेरे में है।'(नवभारत टाइम्स,मुंबई,23.1.11)
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