मुफ्त में खाना, ड्रेस व किताबें भरपूर। फिर भी सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोहभंग! वाकई, कंप्यूटर शिक्षा, पानी व बिजली की योजना, पुस्तकालय सुविधा के साथ ही आलीशान स्कूल भवन छात्रों को आकर्षित करने में विफल साबित हो रहे हैं। आलम यह कि कुमाऊं में 26 प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल छात्र संख्या शून्य होने से बंद हो चुके हैं और 10 से कम छात्र संख्या वाले 249 स्कूल बंद होने के कगार पर हैं। उत्तराखंड में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद सरकारी स्कूलों के हालात सुधरने का संकेत नहीं दे रहे हैं। जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान के बाद अब राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लोक लुभावन प्रावधान अभिभावकों व छात्रों को आकर्षित करने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मंडल में पिछले दो साल में छात्र संख्या शून्य होने के कारण नैनीताल जिले में एक, पिथौरागढ़ में 14, ऊधमसिंह नगर व चंपावत में 3-3, बागेश्वर में 4 प्राथमिक स्कूल तथा पिथौरागढ़ में एक उच्च प्राथमिक समेत कुल 26 सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं। नैनीताल के 32, ऊधमसिंह नगर में 91, पिथौरागढ़ में 84, चंपावत में 10 व बागेश्र्वर में 32 समेत कुल 249 सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या दस से कम पहुंच गई है। सूत्रों का कहना है कि निरीक्षण अभियान के अलावा छात्रों का शैक्षणिक स्तर मापने की तरकीब भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ऊंचा होने के बजाय घट रहा है। इसका फायदा निजी स्कूल उठा रहे हैं। हालात यह हो गए हैं कि सुदूरवर्ती क्षेत्रों में खुले निजी स्कूल बिना दक्ष अध्यापकों के नौनिहालों का भविष्य संवार रहे हैं। अभिभावकों को सरकारी स्कूल के डिग्रीधारी व प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों का सहारा पसंद नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षा की बदहाली और शिक्षा विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की उदासीनता को लेकर सूबे के राजनीतिक दल और विभिन्न सामाजिक संगठन समय-समय पर आवाज बुलंद करते रहते हैं। इन तमाम विरोधों के बावजूद राज्य में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में थोड़ा बहुत सुधार होता भी नहींदिख रहा है(किशोर जोशी,दैनिक जागरण,नैनीताल,राष्ट्रीय संस्करण,12.1.11)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।