पटोरी का गवर्मेट टीचर्स ट्रेनिंग कालेज आज अपनी स्थिति पर आंसू बहा रहा है। ध्वस्त इमारते बताती है कि कभी इसकी स्थिति सुदृढ़ थी। छ: कमरों का छात्रावास था और इतने ही कमरे थे वर्ग संचालन के लिए आठ कमरों में चलता था। कार्यालय और पुस्तकालय भी। परंतु आज न छात्रावास है और न ही वर्ग कक्ष। पुस्तकालय और कार्यालय के नाम पर बचे हैं सिर्फ ध्वस्त मलवे। आज भी इस कालेज में लगभग एक दर्जन शिक्षक और कर्मी प्रतिनियुक्त हैं, जिनपर सरकार का प्रतिमाह ढ़ाई से तीन लाख रुपये खर्च होता है। 1991 तक यहां नियमित टीचर्स ट्रेनिंग होता रहा है। यह कालेज गोपालगंज के छात्रों के लिए आवंटित किया गया था। बाद में सरकार ने बगैर ट्रेनिंग के ही शिक्षकों की नियुक्ति शुरू कर दी। जिससे इस कालेज का कोई उपयोग नहीं रह गया। बाद में नियुक्त शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था प्रारंभ की गई तो इस कालेज को इससे वंचित कर दिया गया। आज यहां प्रतिनियुक्त कर्मी खुले आसमान के नीचे बैठकर अपना दिन गुजारते हैं। कर्मियों ने बताया कि वे काम चाहते है परंतु सरकार उन्हें काम उपलब्ध नहीं करा रही है। अगर सरकार द्वारा शिक्षकों के अलावा आंगनबाड़ी, स्वयं सहायता समूह आदि प्रशिक्षण का कार्य सौंपती तो वे उसे बखूबी पूरा करते(दैनिक जागरण,शाहपुर पटोरी,7.1.11)।
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