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12 जनवरी 2011

बिहारःशिक्षकों की कमी दूर करना ज़रूरी

सूबे में शिक्षारूपी रोशनी को बिखेरने की कोशिश में जुटी राजग-दो सरकार ने हाल ही में नियत वेतनमान पर कार्यरत हजारों शिक्षकों का वेतन बढ़ाकर उनसे जो अपेक्षाएं की हैं, उन्हें पूरा करने में शिक्षकों को भी कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। हालांकि, सरकार का यह मंसूबा तब सफल होगा जब विद्यालयों में छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या हो। राज्य सरकार ने प्राथमिक व मध्य विद्यालय के शिक्षकों के नियत वेतन में हजार रुपये का इजाफा किया है। वेतनवृद्धि मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा अधिकार एक्ट-2009 के तहत की गयी है। यह एक्ट सूबे में एक अप्रैल 2010 से प्रभावी है। वेतन बढ़ोत्तरी के लिहाज से जो अपेक्षाएं शिक्षकों से की गयी हैं, उनमें छह से चौदह वर्ष तक के बच्चों को सप्ताह में कम से कम 45 घंटे काम करना है। इसके साथ ही निचले स्तर की शिक्षा को मजबूती देने में लगे इन शिक्षकों के निजी ट्यूशन या कोचिंग संस्थान में पढ़ाने पर पाबंदी भी लगाई गयी है। इस तरह की पाबंदियां अभी तक उच्च शिक्षा के दायरे वाले शिक्षकों पर ही थीं। एक्ट पर गौर करें तो इसके प्रावधान के मुताबिक एक शैक्षणिक वर्ष में कक्षा एक से पांच तक के लिए 200 तथा कक्षा छह से आठ के लिए 225 कार्यदिवस निर्धारित हैं। एक्ट लागू होने के छह माह के भीतर 30 :1 का छात्र-शिक्षक अनुपात हासिल करने की बात कही गयी है। जबकि वर्तमान में यह अनुपात 56:1 है। इस तरह साफ है कि सूबे में शिक्षकों की घोर कमी है। वैसे मानव संसाधन विकास विभाग ने पांच वर्षो में तीन लाख शिक्षकों को नियोजित करने की ठानी है। हाल के वर्षो में हजारों अप्रशिक्षित शिक्षकों को नियोजित किया गया है, मगर एक्ट के अनुरूप उन्हें प्रशिक्षित करने में प्रशिक्षण संस्थानों की भारी कमी आड़े आ रही है। कुल मिलाकर जो स्थितियां हैं वह यही इंगित करती हैं कि पहले एक्ट में तय अनुपात के हिसाब से शिक्षकों की संख्या बढ़े तब गुणवत्तापरक शिक्षा और शिक्षकों के लिए अनुशासन की बात की जाए। हालांकि यह जगजाहिर है कि शिक्षक आज अपने कर्तव्यों की कसौटी पर कितने खरे हैं। ऐसे में इनके हफ्ते भर में 45 घंटे क्लास लेने और ट्यूशन पढ़ाने पर पाबंदी की मानीटरिंग तभी की जा सकती है जब जिलों में बैठे शिक्षा पदाधिकारी अनुशासन का चाबुक लेकर धरातल पर उतरें(संपादकीय,दैनिक जागरण,पटना,12.1.11)।

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