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14 जनवरी 2011

ग्रामीण डॉक्टरी को हां, कॉमन एंट्रेंस पर ब्रेक

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को गांवों के लिए अलग डॉक्टर बनाने के साढ़े तीन साल के पाठ्यक्रम बेचलर ऑफ रुअरल हेल्थ केयर (बीआरएच) के मामले में बड़ी सफलता हाथ लगी है। हैदराबाद में जुटे राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों और अधिकारियों ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने की कहावत को चरितार्थ करते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की केरल शाखा ने हाईकोर्ट में इस प्रस्ताव के खिलाफ याचिका दायर कर दी। कोर्ट ने इस याचिका को उसी दिन स्वीकार कर लिया जिस दिन राज्य सरकारों ने इस प्रस्ताव को हरी झंडी दी। देश में डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध कर रहा है।

गुरुवार को जारी घोषणा पत्र में कहा गया कि राज्यों ने सर्वसम्मति से कोर्स को स्वीकार किया। इस प्रस्ताव के तहत पूरे देश के जिला मुख्यालयों में मेडिकल स्कूल खोले जाएंगे। केंद्र सरकार हर मेडिकल स्कूल के लिए २० करोड़ रुपए देगी। घोषणापत्र में कहा गया कि वर्ष २०११-१२ में कम से कम ५० मेडिकल स्कूलों की स्थापना के लिए केंद्र सरकार वित्तीय सहायता देने पर विचार करेगी। यह प्रस्ताव आजाद का ड्रीम प्रोजेक्ट है। लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कड़े विरोध की वजह से इस प्रोजेक्ट के सामने सवाल खड़ा हो गया है। केरल के बाद दूसरे राज्यों में भी इस प्रस्ताव के खिलाफ यह संगठन कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहा है। संगठन की तरकश में इस कोर्स के खिलाफ कई मजबूत तर्क हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इस सवाल पर संगठन के साथ है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल ने कहा कि २२ फरवरी को पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों के छात्र इस प्रस्ताव के विरोध में दिल्ली में जमा हो रहे हैं। इसके बाद हम नेताओं को दिल्ली बुलाकर उन्हें समझाएंगे कि सरकार उनके लिए इस कोर्स के जरिए दोयम दर्जे के डॉक्टर बना रही है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ. अनिल बंसल ने कहा कि मानवाधिकार आयोग के साथ बैठक में पिछले साल इन्हीं राज्यों ने कहा था कि यह प्रस्ताव ठीक नहीं है(नई दुनिया,दिल्ली,14.1.11)।

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गुरुवार को हैदराबाद में राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में सभी राज्यों ने केंद्र सरकार की बैचलर इन रूरल हेल्थ केयर (बीआरएचसी) कोर्स योजना पर सर्वसम्मति से सहमति दे दी है। हालांकि इसी बैठक में राज्यों के विरोध के कारण मेडिकल की साझा प्रवेश परीक्षा की योजना पर फिलहाल विराम लग गया। कुछ राज्यों द्वारा कॉमन एलिजिब्लिटी एंड एंट्रेंस टेस्ट (सीईईटी) पर विरोध के बाद इसे टाल दिया गया है।

हैदराबाद में राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया फैसला

स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इस राज्यों के विरोध के बाद सीईईटी को इसी सत्र से लागू करने के सभी संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि साझा मेडिकल प्रवेश परीक्षा पर राज्य सरकारों ने कुछ और चर्चा करने की जरूरत जताई है। सूत्रों का कहना है कि अब इस सत्र से यह योजना लागू नहीं हो सकेगी।

उधर, बैचलर इन रूरल हेल्थ केयर (बीआरएचसी) कोर्स के इसी साल से शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भास्कर को बताया कि केंद्र सरकार यह कोर्स को इसी सत्र में शुरू कर देगी। बैठक में मौजूद स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण जनता के लिए बनाए गए इस कोर्स का प्रस्ताव स्वास्थ्य मंत्रियों ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया। मेडिकल शिक्षा से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने बताया कि इस कोर्स को शुरू करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय तैयार है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने ग्रामीण डाक्टरी कोर्स के लिए पाठ्यक्रम तैयार कर लिया है। अधिकारी का कहना है कि एक बार राज्यों की ओर से जिलों की सूची मिलते ही केंद्र सरकार दाखिले की प्रक्रिया शुरू कर देगी। 2014 तक ग्रामीण डॉक्टरों की पहली खेप देश के विभिन्न उप-स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात हो जाएगी। बीआरएचसी कोर्स में केवल संबंधित जिले के लोगों को ही दाखिला दिया जाएगा।

इस कोर्स की अवधि कुल साढ़े तीन साल की होगी। प्रत्येक छात्र को डिग्री लेने के लिए कम से कम 3240 घंटे की मेडिकल शिक्षा और अस्पतालों में 540 घंटों की ट्रेनिंग पूरी करनी पड़ेगी। बीआरएचसी कोर्स के लिए तैयार अंतिम प्रारूप के मुताबिक ये ग्रामीण डॉक्टर आम बीमारियों का इलाज कर सकेंगे। हालांकि, इन डॉक्टरों को किसी भी तरह की सर्जरी या ऑपरेशन करने की इजाजत नहीं होगी। किसी मरीज के गंभीर होने पर ये डॉक्टर सिर्फ जिला अस्पतालों के लिए रेफर कर सकेंगे।

केंद्र सरकार ने यह कोर्स इसी सत्र में शुरू करने का फैसला किया है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने ग्रामीण डाक्टरी कोर्स के लिए पाठ्यक्रम तैयार कर लिया है। 2014 तक ग्रामीण डॉक्टरों की पहली खेप देश के विभिन्न उप-स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात हो जाएगी।

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