अगर सरकार ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ( एमसीआई ) का प्रस्ताव मान लिया तो एमबीबीएस कोर्स पांच साल का हो जाएगा। इसमें भी छह महीने की इंटर्नशिप वैकल्पिक होगी। इसके साथ ही करिकुलम में भी कई तरह के बदलाव लाने की योजना है।
अंडर ग्रैजुएट मेडिकल कोर्स में सुधार के लिए एमसीआई ने आठ सदस्यीय पैनल का गठन किया था। विजन 2015 के तहत इस पैनल ने कई तरह के बदलाव की सिफारिश की है। इस टीम ने 4+1 मॉडल का प्रस्ताव रखा है और सिलेबस से गैरजरूरी चीजों को हटाने और नई चीजों को डालने का सुझाव दिया है।
फिलहाल एमबीबीएस स्टूडेंट्स को सेकंड ईयर से क्लीनिकल टीचिंग दी जाती है। नए प्रस्ताव के तहत पहले साल से ही इसे शुरू किया जाएगा। पहले साल के कोर्स का फोकस कम्यूनिकेशन , बेसिक क्लीनिकल स्किल और प्रफेशनलिजम पर होगा। प्रफेशनलिजम और एथिक्स कोर्स का अनिवार्य हिस्सा होंगे। पहले और दूसरे साल में फाउंडेशन कोर्स होगा। इसके बाद क्लीनिकल विषय पढ़ाए जाएंगे। क्लीनिकल प्रशिक्षण के लिए दूसरे अस्पतालों और प्राइमरी हेल्थ सेंटर की पोस्टिंंग भी अनिवार्य होगी। क्लर्कशिप मेथड के तहत सभी विभागों में सब - इंटर्न की तरह स्टूडेंट्स की पोस्टिंग होगी जहां उन्हें मरीजों की हिस्ट्री लेने , उनकी जांच करने और प्राथमिक स्तर पर मामले के नियंत्रण के गुर सिखाए जाएंगे।
लेवल -1 स्किल के तहत स्टूडेंट्स को बेसिक सर्जिकल ज्ञान , बेसिकलाइफ सपोर्ट तकनीक , नॉर्मल लेबर मैनेजमेंट और डिलीवरी आदि सीखना अनिवार्य होगा। चार साल में 6400 घंटे की पढ़ाई होगी। आठ सेमेस्टर होंगे। हर सेमेस्टर में 800 घंटे की पढ़ाई होगी। फिलहाल एमबीबीएस कोर्स में कुल 9 सेमेस्टर होते हैं। टीम का मानना है कि कोर्स में बदलाव से स्टूडेंट्स को व्यावहारिक ज्ञान अधिक मिलेगा , फिलहाल एमबीबीएस कोर्स में सैद्घांतिक पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया जाता है(नवभारत टाइम्स,मुंबई,5.1.11)।
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