रांची एजुकेशन हब बनने जा रहा है। ऐसे में यहां शिक्षा को कलंकित करने का ऐसा कारोबार पांव जमा चुका है, जो हमारे होनहार विद्यार्थियों का भविष्य चौपट कर रहा है। भास्कर को पता चला है कि रांची के डेली मार्केट, रेडियम रोड, सुजाता सिनेमा चौक और धुर्वा के कई साइबर कैफे में जाली डिग्रियां बनाने का धंधा फल-फूल रहा है। 200 से 2000 रुपए में यह काम हो जाता है। ये कैफे ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज विवि की भी फर्जी डिग्री बनाने का दावा करते हैं। इनकी जरूरत ऐसे छात्रों को पड़ती है, जिन्हें दक्षिण भारत के शिक्षण संस्थानों में नामांकन कराना होता है। वहां ऐसे कई निजी संस्थान हैं, जो पैसे के लालच में इन सर्टिफिकेटों की जांच नहीं कराते हैं।
200 में ग्रेजुएट
मैं सैयद रमीज जावेद इस फर्जीवाड़े की हकीकत जानने के लिए गुरुवार दोपहर ढाई बजे सुजाता चौक स्थित साइबर कैफे पहुंचा। कैफे के बोर्ड पर कोई नाम नहीं था। अंदर जाकर मैंने कैफे मालिक गुरुबचन सिंह को अपना परिचय छात्र के रूप में दिया। उसे बताया कि मुझे दिल्ली में अकाउंटेंट की नौकरी मिली है, लेकिन मेरे पास अकाउंट ऑनर्स का सर्टिफिकेट नहीं है। मुझे पता चला है कि आप फर्जी सर्टिफिकेट बनाते हैं। अगर आप मदद करेंगे तो मेरा भला हो जाएगा। जो भी पैसा लगेगा, मैं दूंगा। इस पर गुरुबचन भड़क गया। उसने ऐसा कोई काम करने से इनकार कर दिया।
जब मैंने कहा कि मुझे शब्बीर भाई ने भेजा है तो वह शांत हो गया और फर्जी सर्टिफिकेट बनाने का राजी हो गया।मैंने उसे अपने दोस्त का ऑरिजनल सर्टिफिकेट देकर हूबहू कॉपी बनाने को कहा। उसने शाम साढ़े पांच बजे मुझे फोन कर शुक्रवार सुबह दस बजे 200 रुपए के साथ बुलाया। अगले दिन जब मैं कैफे पहुंचा तो सेंट जेवियर्स कॉलेज का फर्जी सर्टिफिकेट देखकर भौंचक रह गया। यह ऑरिजनल जैसा था। मैंने उसे 200 रुपए दिए और वहां से चलता बना। जाने से पहले गुरुबचन ने मुझे यह बात किसी को न बताने की ताकीद भी की।
2000 में सीडेक
मैं अब इस गोरखधंधे में जुटे दूसरे लोगों की तलाश में जुट गया। इसी बीच शुक्रवार शाम मुझे एक सूत्र ने बब्बन नाम के युवक के बारे में बताया, जो यह काम कराता है। फोन पर वह फर्जी सर्टिफिकेट देने पर राजी भी हो गया। बहुत पूछने पर उसने बताया कि वह यह काम रेडियम रोड स्थित एक कैफे से करावाएगा। मैंने उससे मुझे भी वहां ले चलने को कहा। उसने इनकार कर दिया। इसके बाद उसने मुझे शनिवार दोपहर दो बजे कचहरी रोड स्थित राजस्थान कलेवालय के पास मिलने बुलाया। मैं तय समय पर पहुंच गया और उसे सीडेक इंस्टीट्यूट का ऑरिजनल सर्टिफिकेट दिखाकर फर्जी अनिमेष के नाम से बनवाने को कहा।
शाम पांच बजे दोबारा इसी जगह मिलने का समय देकर वह चला गया। पांच बजते ही मैं और अनिमेष कचहरी चौक पहुंच गए। बब्बन वहां पहले से खड़ा था। हमें देखते ही उसने हाथ हिलाकर अपने पास बुलाया। हमें फर्जी सर्टिफिकेट देकर सब कुछ जांच लेने को कहा। यहां भी हमने ऑरिजनल और फर्जी सर्टिफिकेट में कोई अंतर नहीं पाया। काम बहुत ही सफाई से किया गया था। हमने उसे दो हजार रुपए दिए और वहां से निकल गए(अनिमेष नचिकेता,दैनिक भास्कर,रांची,16.1.11)।
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