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27 जनवरी 2011

विश्वविद्यालयों में विज्ञान शिक्षा के लिए पहल की ज़रूरत

पिछले दिनों चेन्नई में संपन्न भारतीय विज्ञान कांग्रेस के ९८वें अधिवेशन में मुख्य फोकस "भारतीय विश्वविद्यालयों में विज्ञान शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्टता" पर रखा गया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे राजनेता इस थीम के मद्देनजर विज्ञान के क्षेत्र में साहसिक पहल करेंगे। भारतीय विश्वविद्यालयों में विज्ञान शिक्षा विश्व मानकों की दृष्टि से बहुत पीछे है और यही बात वैज्ञानिक अनुसंधान पर भी लागू होती है। इन क्षेत्रों में पिछड़ने के कारण आज हमें सक्षम तकनीकी कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। तकनीकी कर्मियों की उपलब्धता और मांग में भारी अंतर है और इसका बड़ा कारण यह है कि विश्वविद्यालय स्तर पर युवा विज्ञान से मुंह मोड़ रहे हैं। विज्ञान की शिक्षा प्रदान करने के लिए प्राइवेट और विदेशी संस्थान आगे आए हैं। उचित रेगुलेशंस और निगरानी के अभाव में इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन शिक्षा का स्तर अपेक्षित मानदंडों के अनुरूप न होने के कारण सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। उसे मजबूरन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट शिक्षा मुहैया कराने के लिए आगे आना पड़ रहा है। सरकार इस कार्य में तभी सफल हो सकती है, जब वह मानव संसाधनों का विस्तार करे और विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक स्तर में वृद्धि करे। नए विश्वविद्यालय खोलने की बात अच्छी बात है, लेकिन हमारा मुख्य जोर मौजूूदा विश्वविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय स्थिति और उनकी स्वायत्तता को मजबूत करने पर होना चाहिए ताकि अनुसंधान और शिक्षा उत्कृष्ट नतीजे देने के काबिल बनाया जा सके। विश्वविद्यालयों में रिसर्च को बाहरी समर्थन भी जरूरी है। इसके अच्छे नतीजे सामने भी आए हैं। पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत के रिसर्च प्रकाशनों में १२ प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई है, जबकि विश्वविद्यालयों का आउटपुट ३० प्रतिशत हुआ है। हमें इन दरों की वृद्धि को रेखांकित करने के बजाय औसत में सुधार करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

आजकल हमारे नीति निर्धारक और टेक्नोक्रेट इनोवेशन या नए आविष्कारों पर बहुत जोर देते हैं। इनोवेशन को खरीदा या थोपा नहीं जा सकता। यह तभी हासिल हो सकता है, जब उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में रिसर्च और शिक्षा के लिए उचित माहौल तैयार किया जाए। हमारी सबसे बड़ी चुनौती विश्वविद्यालयों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को ऊंचे स्तर पर ले जाने की है। यह सही है कि भारतीय साइंस को आज इनोवेशन की तलाश है, यह उसकी जरूरत भी है लेकिन इसे सिर्फ सरकारी घोषणाओं से हासिल नहीं किया जा सकता। इसे सुविचारित नीतियों, सही प्राथमिकताओं और दीर्घकालिक प्रयासों से ही हासिल किया जा सकता है। इसमें सरकार के साथ-साथ वैज्ञानिक समुदाय की भूमिका भी अहम होगी(मुकुल व्यास,नई दुनिया,दिल्ली,26.1.11)।

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