रांची विश्वविद्यालय के नाम पर फर्जी अंक-पत्र बनाने का खेल हैदराबाद में भी चल रहा है। यह मामला तब सामने आया, जब एक सप्ताह पहले वहां के पांच लोगों ने जाली अंक-पत्रों के आधार पर रांची विवि में सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया। आवेदन के साथ छह सौ रुपए का ड्राफ्ट और अंकपत्र संलग्न था। परीक्षा विभाग ने देखते ही इन अंकपत्रों को जाली करार दे दिया, क्योंकि यहां से जारी होने वाले अंकपत्र भिन्न होते हैं।
फर्जी संस्थान को रांची विवि से संबद्ध बताया
हैदराबाद से जो अंकपत्र,सर्टिफिकेट जारी करने के लिए आए हैं, वो मिल्लत टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, रांची के नाम पर बने हैं। जालसाजों ने इसे रांची विश्वविद्यालय से संबद्ध बता कर फर्जी अंकपत्र दिए। जब छात्रों ने सर्टिफिकेट मांगा तो कहा कि बैंक ड्राफ्ट और अंक-पत्र लगाकर आवेदन रांची विश्वविद्यालय भेज दो। रांची विश्वविद्यालय में जांच में मामला पकड़ा गया। विश्वविद्यालय के एक पदाधिकारी ने बताया कि मिल्लत ट्रेनिंग कॉलेज पिछले कई वर्षो से अस्तित्व में नहीं है।
कानूनी कार्रवाई में कोताही
रांची विवि में इस तरह के मामले कई बार पकड़े गए हैं। इस गोरखधंधे में शामिल लोग रांची विवि के नाम का दुरुपयोग बार-बार करते हैं। 2009 में जांच के दौरान विभिन्न राज्यों से इस तरह के 36 फर्जी मामले सामने आए थे।
इसकी सूची परीक्षा विभाग विवि प्रशासन को भेज चुका है। 2010 में लगभग दो दर्जन फर्जी मामले पकड़े गए। फर्जीवाड़े की पूरी जानकारी होने के बावजूद प्राथमिकी में विलंब होना समझ से परे है।
इन्होंने दिया था आवेदन
तदुरी निवास: मिल्लत ट्रेनिंग कॉलेज से 1998-99 में बीएड पास किया। इनका पता है- मकान नं 4327, न्यू एमआईजी, आरसी पुरम, हैदराबाद।
पी. रामबाबू: मिल्लत कॉलेज से 1996-97 में बीएड किया। इनका पता है- मकान नं 1-9-61/64/सी, हनुमान टेंपल लेन, विजय कालोनी, जिला : नलगोंडा, आंध्रप्रदेश।
रमा इंदिरा रेड्डी: मिल्लत कॉलेज से बीएड की परीक्षा 1997-98 में उत्तीर्ण की। इनका पता है -मकान नं 16-102-/3/6/2, विद्या नगर, जिला : नालगोंडा, आंध्रप्रदेश।
फर्जी प्रमाणपत्रों से होता है दाखिला
रांची विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्वीकार किया कि फर्जी अंक पत्र के आधार में बीएड पाठ्यक्रम में दाखिला हुआ है। जांच के क्रम में दो मामले प्रकाश में आया है। इन दोनों पर शीघ्र प्राथमिकी की जाएगी। हालांकि विवि प्रशासन ने दो अभ्यर्थियों के नाम खुलासा करने से इंकार कर दिया।
नहीं रहती विस्तृत जानकारी
फर्जी डिग्रियों और प्रमाणपत्रों के कई मामले प्रकाश में आए हैं। संबंधित व्यक्ति या संस्थान के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं रहने के कारण कार्रवाई में कठिनाई होती है। पूर्ण जानकारी रहने पर प्राथमिकी दर्ज की जाती है-""डॉ. एए खान, कुलपति रांची विवि
प्राथमिकी दर्ज करने को कहा
हैदराबाद के कुछ छात्रों ने सर्टिफिकेट के लिए आवेदन दिया था। संलग्न अंकपत्र फर्जी थे। प्राथमिकी दर्ज करने के लिए आरयू प्रशासन को लिखा गया है। दक्षिण भारत में ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं।""
डॉ. एके महतो, परीक्षा नियंत्रक, आरयू(राकेश,दैनिक भास्कर,रांची,19.1.11)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।