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26 जनवरी 2011

निजी क्षेत्र में दलितों के आरक्षण का खाका तैयार

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में दलित वर्ग को 15 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश करने का मसौदा तैयार कर लिया है। इसमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में भी आरक्षण की बात शामिल है। इन दोनों क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों को आरक्षण देने की सिफारिशों की यह रिपोर्ट आगामी मार्च तक राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को आयोग की ओर से सौंप दी जाएगी। आयोग का साफ कहना है कि यूपीए-वन सरकार के कार्यकाल के दौरान हुई सकारात्मक पहल की बातों से नतीजा नहीं निकल सकता। इसलिए न्यायपालिका और निजी क्षेत्र दोनों में डायरेक्ट एक्शन के तहत दलितों को आरक्षण देने की व्यवस्था लागू करनी होगी।

राष्ट्रपति को भेजेगा 15 फीसदी कोटे की सिफारिशें

निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में 15 फीसदी आरक्षण की सिफारिशों का मसौदा तैयार करने की पुष्टि ‘अमर उजाला’ से खुद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग आयोग के अध्यक्ष पी.एल. पुनिया ने की। यह सिफारिशें इसलिए सियासी रूप से संवेदनशील होगी क्योंकि आयोग को मिले संवैधानिक दर्जे की वजह से राष्ट्रपति को भेजी गई सिफारिशों को अपनी कार्यवाही रिपोर्ट यानि एटीआर के साथ सरकार को संसद में रखना होगा। एटीआर में सरकार को यह बताना पड़ेगा कि वह सुझावों को मानेगी या नहीं और यदि नहीं मानती है तो भी इसकी वजहें बतानी पड़ेंगी। जाहिर तौर पर कोई भी सरकार अपनी सियासत के लिहाज से इसे सीधे तौर पर नकारने से बचेगी।

उद्योग जगत के कदम को नाकाफी मान रहा आयोग
आयोग ने निजी क्षेत्र में एससी वर्ग को आरक्षण देने के लिए अपनी सिफारिशों के मसौदे में साफ कहा है कि यूपीए वन में प्रधानमंत्री के समिति बनाकर सकारात्मक पहल की बातों का उद्योग जगत और उनके संगठनों ने मामले को टाल दिया है। इसलिए अब सीधा आरक्षण लागू करना ही विकल्प है। तर्क यह भी है कि निजी क्षेत्र में केवल उद्योगजगत की ही नहीं बल्कि बैंक, वित्तीय संस्थानों और आम निवेशकों का पैसा लगा होता है। ऐसे में जब सरकारी क्षेत्र और सरकारी उपक्रमों में नौकरियां कम हो रही हैं तो अनुसूचित जाति को आरक्षण सामाजिक दायित्व है। 

पुनिया ने भी कहा कि यूपीए-वन के दौरान उद्योग जगत और संगठनों ने सकारात्मक पहल के नाम पर अब तक ड्रामेबाजी की है और इसीलिए आयोग डायरेक्ट एक्शन का हिमायती है। न्यायपालिका में आरक्षण की हिमायत करते हुए मसौदे में तर्क दिया गया है कि सदियों से दबे-कुचले इस वर्ग की सामाजिक परिस्थितियां भिन्न होती हैं, ऐसे उनसे जुड़े फैसले भ्रांतिवश न हों यह सुनिश्चित करने के लिए सभी न्यायिक स्तरों पर भागीदार बनाना जरूरी है। पुनिया ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसके लिए न्यायिक सेवा शुरु करने के साथ-साथ वकील से जज बनने वाले कोटे में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति के जजों की नियुक्ति की सिफारिश करेगा। (संजय मिश्र,अमरउजाला,दिल्ली,26.1.11)

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