दिल्ली में नर्सरी दाखिले की प्रक्रिया चल रही है और ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला किसी निजी स्कूल में कराना चाहते हैं। वे दिल्ली नगर निगम या सरकारी स्कूलों की ओर देखना तक नहीं चाहते। ऐसा नहीं है कि अभिभावकों की इस बेरुखी की वजह से दिल्ली सरकार या एमसीडी वाकिफ नहीं हैं। दोनों सरकारी एजेंसियां जानती हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता और स्कूलों में संसाधनों की कमी ही वे कारण हैं, जिनकी वजह से ज्यादातर अभिभावक सरकारी स्कूलों से विमुख हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि ये दोनों एजेंसियां इस बात को लेकर जरा सा भी चिंतित नहीं हैं और स्कूलों में संसाधनों की कमी दूर करने व शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए कोई उल्लेखनीय प्रयास होते नहीं दिखाई दे रहे हैं। इसी सरकारी लापरवाही का नतीजा सोमवार को पश्चिमी दिल्ली के एक एमसीडी स्कूल में दिखाई दिया। वहां बिजली-पानी, डेस्क, इत्यादि न होने के कारण तमाम समस्याओं के बीच पढ़ने को मजबूर छात्र-छात्राओं ने मोमबत्ती व पोस्टर हाथों में लेकर स्कूल प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन कर रोष जाहिर किया। इन छात्रों ने न सिर्फ अपनी परेशानी बयां की, बल्कि निगम स्कूलों की तस्वीर भी सबके सामने उजागर कर दी। जहां सरकार ने शिक्षा के अधिकार को लेकर कानून बना दिया हो, वहां सरकारी स्कूल के छात्रों का पढ़ाई छोड़कर समस्याएं दूर करने की गुहार लगाना निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है। और यह स्थिति यदि राजधानी के ही सरकारी स्कूलों की हो, तो फिर कहने को कुछ भी शेष नहीं रह जाता। इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि जब राजधानी के सरकारी स्कूलों का यह हाल है तो देश के दूरदराज के इलाकों की स्थिति क्या होगी? शिक्षा के अधिकार का सही अर्थो में लाभ तभी हो सकता है, जब स्कूलों में संसाधनों की कमी न हो और छात्रों को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त हो। इसके लिए सरकारी स्कूलों को अपने तौर-तरीके में बदलाव करना होगा। निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए भी दिल्ली सरकार और एमसीडी को अपने स्कूलों की स्थिति में सुधार करना चाहिए। अभिभावकों को जब तक निजी स्कूलों के स्तर का सरकारी विकल्प नहीं मुहैया कराया जाएगा, तब तक न तो निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लग पाएगी और न ही सही अर्थो में शिक्षा के अधिकार का लाभ मिल पाएगा(संपादकीय,दैनिक जागरण,दिल्ली,19.1.11)।
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