विशेष अधिनियम के तहत प्रदेश में खुल रहे निजी विश्वविद्यालय भी प्रवेश एवं शुल्क निर्धारण समिति के दायरे में आ सकते हैं। कमेटी ने इन्हें भी निजी संस्थाओं के समकक्ष मानते हुए फीस के संबंध में राज्य शासन को पत्र भेजा है। इससे एक नया विवाद शुरू हो सकता है। वहीं पीजीडीएम पाठ्यक्रम संचालित करने वाले संस्थानों को भी अब कमेटी से फीस तय कराना पड़ेगा। राज्य शासन द्वारा निजी विश्वविद्यालयों को मंजूरी देते ही मध्यप्रदेश शुल्क एवं प्रवेश निर्धारण समिति सक्रिय हो गई है। समिति ने इन विश्वविद्यालयों को भी अपने दायरे में बताते हुए इनके प्रवेश नियम एवं फीस के निर्धारण के संबंध में शासन से मार्गदर्शन मांगा है। बताया जाता है कि कमेटी ने अपने पत्र में बताया है कि इन विश्वविद्यालयों में भी व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे। एक ही राज्य में दो नियम नहीं चल सकते। इससे विवाद की स्थिति बन सकती है। कमेटी से जुड़े सूत्रों की मानें तो कमेटी भी अधिनियम से बनी है और अधिनियम सभी पर लागू होते हैं। निजी विवि को कम से कम फीस निर्धारण में छूट नहीं दी जा सकती। मगर अंतिम निर्णय राज्य शासन को करना है। विवि शब्द बन सकता है बाधा : फीस कमेटी की इस पहल में विश्वविद्यालय शब्द बाधा बन सकता है। जानकारी के अनुसार जिस अधिनियम के तहत कमेटी का गठन किया गया है, उसमें निजी व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित करने वाले निजी संस्थानों का उल्लेख किया गया है। विश्वविद्यालय शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है। इसका फायदा निजी विवि उठा सकते हैं, लेकिन फीस कमेटी के अधिकारियों का कहना है कि जिस समय कमेटी के लिए अधिनियम बना था, तब प्रदेश में निजी विवि की व्यवस्था नहीं थी(दैनिक जागरण,भोपाल,2.1.11)।
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