उच्च शिक्षा में संसाधनों की कमी से जूझ रही सरकार जरूरतों को पूरा करने के लिए और उदारवादी रुख अपनाएगी। शायद यही वजह है कि वह सार्वजनिक व निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर बनने वाले नये भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों (ट्रिपल आईटी) को और स्वायत्तता देने की तैयारी में है। कोशिशें मुकाम तक पहंुचीं तो नये ट्रिपल आईटी के निदेशकों की नियुक्ति में विजिटर की मंजूरी जरूरी नहीं रह जायेगी। सूत्रों के मुताबिक सरकार पीपीपी मॉडल पर देश भर में प्रस्तावित 20 नये भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों को और स्वायत्तता देना चाहती है। निजी क्षेत्र, मानव संसाधन विकास मंत्रालय व संबंधित राज्य सरकारों के संयुक्त साझेदारी में बनने वाले ये संस्थान पूरी तरह स्वायत्तशासी होंगे। लिहाजा उनके निदेशकों की नियुक्ति में सरकार कोई दखल नहीं देना चाहती। निदेशक नियुक्त करने का अधिकार संस्थानों के संचालक मंडल को होगा। संचालक मंडल में निजी क्षेत्र, केंद्र व संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधि शामिल होंगे। मंत्रालय की यह पहल मुकाम तक पहंुची तो निदेशक की नियुक्ति में विजिटर (राष्ट्रपति) की भूमिका नहीं रह जायेगी। अभी निदेशकों की नियुक्ति में विजिटर की मंजूरी जरूरी होती है। अलबत्ता सरकारी ट्रिपल आईटी के निदेशकों की नियुक्ति में विजिटर की मंजूरी जरूरी होगी। सूत्र बताते हैं कि इन नये ट्रिपल आईटी को भी भारत के नियंत्रक व महा लेखा परीक्षक (सीएजी) के नियम-कायदों के दायरे में अपने अकाउंट का लेखा-जोखा रखना होगा। सरकार के अधीन भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों का ऑडिट तो सीएजी ही करेगी, लेकिन मुनाफा कमाने से दूर रहने वाले पीपीपी मॉडल के इन ट्रिपल आईटी को चार्टर्ड एकाउंटेंट से अपना ऑडिट कराने की छूट होगी। हालांकि इसका उल्लेख ट्रिपल आईटी के लिए बनने वाली सोसायटी के प्रावधानों में करना जरूरी होगा। सूत्रों के मुताबिक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों के लिए तैयार विधेयक के मसौदे में इस तरह के प्रावधान कर भी दिये गये हैं, लेकिन अभी उस पर अंतिम निर्णय नहीं हो सका है(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,7.1.11)।
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