पंद्रह प्रतिशत के केन्द्रीय कोटे पर प्रदेश में मेडिकल पीजी की प्रवेश परीक्षा में अन्य राज्यों से एमबीबीएस करने वाले डाक्टरों के भाग लेने का मामला फिर अटक गया है। महाधिवक्ता की एक बार हरी झंडी मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने दोबारा इस पर उनसे राय मांगी है। परेशान डाक्टरों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अविलंब हस्तक्षेप करने की अपील की है, जबकि आवेदन जमा करने में मात्र दो दिन बचे हैं।
जानकारी के मुताबिक इस विसंगति को दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने महाराष्ट्र के मेडिकल रिसर्च निदेशालय से राय मांगी थी। महाराष्ट्र सरकार ने स्पष्ट कहा कि पीजी मेडिकल एवं डेंटल कोर्स में 15 प्रतिशत कोटे पर नामांकन की व्यवस्था वहां 2005 से लागू है। तत्पश्चात महाधिवक्ता से राय मांगी गयी। उन्होंने 15 दिसंबर को ही हरी झंडी दे दी। लेकिन, वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे की सहमति के बावजूद संचिका दोबारा महाधिवक्ता के पास उनकी राय जानने के लिए भेज दी गयी है।
डा.सौरव कुमार, डा.प्रसून कुमार, डा.स्निग्धा, डा.नीतिमा, डा.सरोज, डा.विवेक, डा.अनिरूद्ध कुमार एवं डा.श्वेता कुमारी आदि डाक्टरों ने मामले को फिर लटकता देख मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप करने की गुहार लगायी है। 23 जनवरी को आयोजित होने वाली प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा के लिए पहले आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 20 दिसंबर थी, जिसे बढ़ाकर 3 जनवरी किया गया है। आवेदन जमा करने को अब दो ही दिन बचे हैं। प्रदेश में इस समय पीजी कोर्स में करीब 400 सीटें हैं। डेंटल और आयुर्वेद की सीटें मिलाकर यह संख्या 499 है। सीबीएसई टेस्ट पास कर करीब 200 से अधिक बिहारी छात्र हर साल राज्य से बाहर एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करते हैं(दैनिक जागरण,पटना,2.1.11)
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