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23 जनवरी 2011

दिल्लीःगरीब बच्चों को दाखिला देंगे निजी स्कूल

शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 25 फीसदी गरीबी कोटा पर रार पूरी तरह से खत्म हो गई है। इसे दिल्ली सरकार की सख्ती या दबाव कहें या कानून के डंडे का डर, आखिरकार मनमानी पर उतारू पब्लिक स्कूलों को लाइन पर आना ही पड़ा। शनिवार को आयोजित पब्लिक स्कूलों की एक्शन कमेटी की बैठक में सर्वसम्मति से फैसला लिया गया। इसमें स्कूलों को साफतौर पर निर्देश जारी कर दिया गया है कि वे अपने यहां 25 फीसदी गरीबी कोटे का आरक्षण दें। एक्शन कमेटी ने फैसले की सूचना सभी स्कूलों को लिखित रूप से भेज दी है। एक्शन कमेटी राजधानी के दो सौ से अधिक नामचीन स्कूलों का प्रतिनिधित्व करती है। बड़े स्कूलों के सरकार के आगे झुक जाने के बाद मध्यम वर्गीय स्कूलों के आंदोलन की हवा निकल जाएगी और उन्हें भी इसी राह पर चलना होगा। एक्शन कमेटी के सदस्य एस.एल. जैन ने बताया कि बैठक में सभी बिंदुओं पर गौर करने के बाद ही इसका निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि हम इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जा चुके हैं। जब तक सुप्रीम कोर्ट का कोई निर्णय नहीं आ जाता, तब तक स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के तहत 25 फीसदी गरीबी कोटा लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अब सबकी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर लगी हैं। वहां इस पर सुनवाई चल रही है। शिक्षा के अधिकार कानून अप्रैल-2010 में बना है। इसमें सभी स्कूलों में 25 फीसदी गरीबी कोटा लागू कर दिया है लेकिन राजधानी के पब्लिक स्कूल इसका यह कह कर विरोध कर रहे थे कि जब सरकार उन्हें कोई फंड नहीं देती है तो फिर वे गरीबी कोटा को कैसे लागू करें। वे सरकार से फंड लेने को भी तैयार नहीं थे और न ही गरीबी कोटा लागू को करने के लिए। कुछ दिनों से इसी को लेकर राजधानी में माहौल गर्म रहा और इसके लिए दिल्ली सरकार को आगे आना पड़ा था। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने जब इस कड़े वक्तव्य दिए और मान्यता रद करने जैसी बात कही तो स्कूल वाले रास्ते पर आ गए(दैनिक जागरण,दिल्ली,23.1.11)।

उधर,नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि ईडब्ल्यूएस पर असमंजस बरक़रार हैः


आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) की सीटों को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं हो पाई है। शनिवार को आयोजित प्राइवेट स्कूलों की बड़ी संस्था एक्शन कमिटी की मीटिंग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने पर सहमति बनी है। इसके साथ ही प्राइवेट स्कूलों ने दिल्ली सरकार के सामने यह प्रस्ताव रखने की योजना बनाई है जिसमें सरकारी सहायता राशि को स्कूलों को न देकर सीधे पैरंट्स को देने का सुझाव दिया जाएगा।
मीटिंग में शामिल स्कूल प्रतिनिधियों ने बताया कि अब ईडब्ल्यूएस की सीटों को लेकर स्कूलों की राय अलग-अलग थी। कुछ संस्थाओं ने इसे राइट टु एजुकेशन एक्ट का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लिया था तो कुछ ने इसे मानने से साफ इनकार कर दिया था और एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। शनिवार की बैठक में सभी स्कू लों ने इस बात पर सहमति जताई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी को मान्य होगा।

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