बिहार में मात्रात्मक शिक्षा की जल्दबाजी में सरकार ने शिक्षामित्र भर्ती करने की संकल्पना को लागू तो कर दिया लेकिन इससे राज्य में गुणवत्तापरक शिक्षा व्यवस्था का कबाड़ा निकल गया और संविदा के आधार पर भर्ती किए गए ये अधिकतर गुरू जी खुद ही इतने योग्य नहीं जो नौनिहालों के भविष्य को रौशन कर सकें।
शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन का काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था प्रथम ने बिहार के संबंध में हाल में जारी की गयी अपनी रिपोर्ट में मौजूदा शैक्षणिक गुणवत्ता पर सवाल उठाया है और छात्रों की नयी पौध की दक्षता तथा कुशलता पर करारा प्रहार किया है। भारी बहुमत से बिहार में दुबारा सत्ता हासिल करने वाली नीतीश सरकार भी स्वीकार करती है कि 2015 तक बिहार को साक्षर और शिक्षित बनाने का सपना पूरा करने की राह बहुत कठिन है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वीकार किया है कि सूबे की राजग सरकार के प्रथम कार्यकाल में शिक्षा के लिए मात्रात्मक प्रयास पर विशेष बल दिया गया जिससे गुणवत्ता प्रभावित हुई है। अप्रशिक्षित प्राथमिक शिक्षकों की बड़े पैमाने पर बहाली हुई जो सरकार की मजबूरी थी। अब ऐसे शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा और नियमित आधार पर उनकी योग्यता परीक्षा होगी।
शिक्षा की प्रगति पर रिपोर्ट तैयार करने वाली संस्था प्रथम ने हाल में जारी वार्षिक शैक्षणिक स्थिति रिपोर्ट असर 2010 में बिहार में शिक्षा के हर क्षेत्र में बहुत काम करने की जरूरत पर बल दिया है। प्रथम की रिसोर्स सेंटर की निदेशक रूक्मिणी बनर्जी के अनुसार छह से 14 वर्ष आयु वर्ग के विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों की पढ़ने और गणितीय प्रश्नों को हल करने की क्षमता असंतोषजनक है और चिंता का कारण है(लाईव हिंदुस्तान डॉटकॉम,30.1.11)।
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