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26 जनवरी 2011

कैसे बचें एग्जाम फीवर से

बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को कई तरह की मानसिक व शारीरिक समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। कुछ हद तक ये समस्याएं वास्तव में होती हैं, जबकि कई बार छात्र इनके होने का भ्रम पाल लेते हैं। परिणाम होता है एंग्जायटी और तनाव। इस एग्जाम फीवर के चलते परीक्षा की तैयारी भी सही ढंग से नहीं हो पाती। कैसे पार पाएं इन समस्याओं से, बता रहे हैं संजीव चंदः

पढ़ाई में होनहार अमित इस साल 12वीं की बोर्ड परीक्षा में बैठ रहा है तथा अपनी तैयारी को लेकर पूरी शिद्दत से प्रयास में लगा हुआ है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से पढ़ाई के दौरान उसे सिरदर्द होने लगता है। घबराहट के कारण उसे ऐसा लगता है कि जो कुछ भी पढ़ा है, वह एक-एक करके भूल रहा हो। अपनी इस नई परेशानी के कारण अमित पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहा है। धीरे-धीरे उसमें चिड़चिड़ापन आता जा रहा है। उसकी हरकतों से पेरेंट्स भी परेशान हैं। वे अब किसी मनोचिकित्सक की सहायता लेने की सोच रहे हैं।


यह परेशानी सिर्फ अमित की ही नहीं है, बल्कि परीक्षा के दिनों में तैयारी कर रहे अधिकांश छात्रों की है। यही कारण है कि परीक्षा का दबाव उनके सिर चढ़ कर बोलता है। कारणों को जानने का प्रयास करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि तैयारी के दिनों में छात्रों के ऊपर सेलेबस पूरा करने तथा अधिक अंक लाने का भारी दबाव रहता है। कई बार तो पेरेंट्स भी टोका-टोकी एवं अधिक अंक लाने का प्रेशर बनाए होते हैं। चूंकि सभी छात्रों का धैर्य एक सा नहीं होता, नतीजतन बाल मन भटकने अथवा टूटने लग जाता है। उनमें कई तरह की समस्याएं खासकर एग्जाम फीवर, स्ट्रेस व एंग्जाइटी, सिरदर्द या माइग्रेन की शिकायत, नींद गायब हो जाना, भूख न लगना, स्वभाव से चिढ़चिढ़ा हो जाना, आंखों व पेट की परेशानी आदि सामने आती हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पेरेंट्स इन समस्याओं को बच्चे का बहाना समझने लगते हैं। संभव है कुछ छात्र ऐसा जानबूझ कर करते हों, पर ये समस्याएं हकीकत में होती भी हैं, इसलिए इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

एग्जाम फीवर/एंग्जायटी व स्ट्रेस
देश की शिक्षा पद्धति ऐसी है कि दबाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। फिर भी सीबीएसई एवं अन्य बोर्डस ने काउंसलर्स, हेल्पलाइन, मॉडल पेपर आदि के जरिए उनकी परेशानी को काफी हद तक कम करने का भी प्रयास किया है। फिर भी एग्जाम के दिनों में छात्रों के सामने अक्सर स्ट्रेस हावी हो ही जाता है। छात्र बदला-बदला सा व्यवहार करने लगते हैं या उन्हें कई तरह की शारीरिक परेशानियां घेर लेती हैं। 

अत्यधिक तनाव के चलते वे किसी से ढंग से बात नहीं करते तथा परिवार से कटे-कटे रहने लगते हैं। लगातार कई दिनों तक इस स्थिति में रहने से छात्र डिप्रेशन की स्थिति में पहुंच जाते हैं। वैसे ये समस्याएं जितनी बड़ी लगती हैं, वास्तव में उतनी बड़ी होती नहीं हैं। जरा-सी सावधानी, जरा-सा विवेक छात्रों को इनसे बचा सकता है।

आत्मविश्वास पर पड़ता है असर
छात्रों के अंदर पनपी इन शारीरिक व मानसिक समस्याओं का सीधा असर उनके आत्मविश्वास पर पड़ता है। छात्रों को लगने लगता है कि अब समय उनके हाथ से निकल गया है तथा वे कुछ नहीं कर सकते। अधिकांश छात्रों को यह लगने लगता है कि उन्होंने जो कमिटमेंट खुद से अथवा अपने परिवार से किया था, वह अब कभी पूरा नहीं हो सकेगा। मानसिक द्वंद्व के कारण छात्र आत्महत्या जैसा घातक कदम तक उठा लेते हैं।

इस स्थिति में छात्रों को यह मान कर चलना होगा कि यदि वे किन्हीं कारणों से सफल न भी हुए तो उनके पेरेंट्स उन्हें पहले जैसा ही प्यार करेंगे। ये समस्याएं तो मामूली हैं, जिनका तत्काल हल निकल सकता है। ऐसा सोचने से ही वे अपनी खोई हुई लय एवं एकाग्रता फिर से हासिल कर सकते हैं। बस जरूरत है तो उन्हें अपना आत्मविश्वास बनाए रखने की।

काउंसलर/मनोचिकित्सक हैं मददगार
पेरेंट्स को जरा भी लगता है कि बच्चे को शैक्षिक, शारीरिक अथवा मानसिक परेशानी है तो वे बिना कल पर टाले तत्काल किसी काउंसलर अथवा मनोचिकित्सक की सेवा लें। छात्र इस मामले में खुद अपनी समस्या बता कर पहल कर सकते हैं। इससे उनकी समस्या का तत्काल हल निकल जाएगा। अब तो बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी काउंसलर अथवा मनोचिकित्सक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सीबीएसई ने अपनी वेबसाइट के जरिए छात्रों को राहत प्रदान करने की सार्थक कोशिश भी की है। इस क्रम में हर साल उनके द्वारा प्रिंसिपल, काउंसलर व मनोचिकित्सकों का हेल्पलाइन पैनल तैयार किया जाता है। कुछ सामान्य मामलों में पेरेंट्स खुद ही काउंसलर की भूमिका निभा सकते हैं।

एग्जाम स्ट्रेस की सामान्य प्रतिक्रियाएं
शारीरिक मानसिक
नींद न आना स्ट्रेस या एग्जाम फोबिया
सिरदर्द अथवा माइग्रेन डिप्रेशन
सांस का तेज या धीमा होना एकाग्रता में कमी
एलर्जी आत्मविश्वास गिरना
पाचन संबंधी दिक्कत खुद को कमतर आंकना

छात्रों के लिए सावधानियां
क्या करें क्या न करें
शेडय़ूल मिस न करें भरोसा न गिरने दें
लक्ष्य के प्रति समर्पित हों खान-पान में असंतुलन
पूरी नींद लें लेट कर न पढ़ें
सोच सकारात्मक रखें रिएक्ट करने से बचें
दोस्तों के संपर्क में रहें सिगरेट, शराब का सेवन

छात्रों की समस्याओं को हल्के में न लें अभिभावक
छात्रों में पनप रही परीक्षा संबंधी समस्याओं को अक्सर अभिभावक अपनी व्यस्तता या बच्चे की बहानेबाजी समझ कर नजरअंदाज अथवा हल्के में लेना शुरू कर देते हैं। उनको लगता है कि बच्चा पढ़ाई के डर अथवा प्रेशर के कारण इस तरह की हरकत कर रहा है। यह स्थिति खतरनाक हो सकती है। देखा जाए तो इन दिनों पेरेंट्स पर भी एग्जाम को लेकर दबाव रहता है, लेकिन बच्चे भी हमेशा गलत नहीं होते। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चे के साथ अपना कम्युनिकेशन बनाए रखें तथा उनकी तैयारी से अवगत होते रहें। बच्चे को भी लगेगा कि पेरेंट्स उसकी पढ़ाई को लेकर गंभीर हैं और वह अधिक उत्साहित होकर तैयारी में लगा रहेगा। लेकिन कम्युनिकेशन कीयह सारी प्रक्रिया एक स्वस्थ वातावरण में होनी चाहिए, न कि बच्चे पर अत्यधिक दबाव बना कर।

कम्युनिकेशन गैप न होने दें छात्र
प्रोफेसर अशुम गुप्ता
हेड, मनोविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

तैयारी के दौरान उत्पन्न स्ट्रेस की स्थिति से कैसे निपटें?
परीक्षा के दिनों में स्ट्रेस तभी होता है, जब छात्र की तैयारी ठीक से नहीं हो पाती। छात्र को लगता है कि अभी बहुत सारा सेलेबस याद करने के लिए छूटा हुआ है और समय बहुत कम है। इससे उसमें स्ट्रेस बढ़ता है और एंग्जायटी उत्पन्न होती है। जैसे-जैसे एंग्जायटी बढ़ती है, वैसे-वैसे याद करने की क्षमता घटती जाती है। बेहतर होगा कि छात्र शेडय़ूल के साथ तैयारी करें तथा अपना आज का कोई भी काम कल पर न टालें। छात्र खुद से बहुत ज्यादा उम्मीदें भी न पालें।

स्ट्रेस कम करने में अन्य गतिविधियां किस हद तक सहायक हैं?
पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियां स्ट्रेस को काफी हद तक कम कर सकती हैं, बशर्ते छात्र का खुद पर नियंत्रण हो। टीवी देखने, टहलने, ब्रीदिंग एक्सरसाइज, फोन पर बातचीत आदि के जरिए स्ट्रेस को दूर भगाया जा सकता है। इससे छात्रों को नई ऊर्जा मिलेगी और वे मन लगा कर पुन: तैयारी में जुट जाएंगे। बहुत ज्यादा स्ट्रेस हो तो थोड़ी देर तक आराम कर लें या दोस्त के साथ टहलने निकल जाएं। ज्यादा रिलेक्स होकर पढ़ेंगे तो भी नींद आएगी।

अभिभावकों द्वारा प्रेशर बनाने पर क्या करें छात्र?
पेरेंट्स को जरा भी लगता है कि बच्चा पढ़ाई से विमुख हो रहा है या उनके हिसाब से पढ़ाई नहीं कर रहा है तो वे बच्चे पर अतिरिक्त प्रेशर बनाना शुरू कर देते हैं। नतीजा यह होता है कि बच्चे पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बच्चे को चाहिए कि वह पेरेंट्स के साथ अंडरस्टेंडिंग डेवलप करे तथा अपनी प्रगति से उन्हें अवगत कराए। एक बार भरोसा जता लेने के बाद यह स्थिति दोबारा नहीं आएगी। बच्चे को टीवी देखने से मना कर दूसरे कमरे में पेरेंट्स यदि टीवी देख भी रहे हैं तो उसे नजरअंदाज कर पढ़ाई में ध्यान लगाएं।

खोया आत्मविश्वास कैसे हासिल करे छात्र?
ज्यादातर आत्मविश्वास रेगुलर व सटीक पढ़ाई न होने से ही गिरता है, इसलिए सबसे पहले अपनी तैयारी का शेडय़ूल परखें। खुद से डिप्रेशन का भाव दूर कर सकारात्मक सोच विकसित करें। इस प्रक्रिया को पॉजिटिव सेल्फ इंस्ट्रुक्शन कहा जाता है। तैयारी यदि कमतर भी है तो छात्र हार न मानें, बल्कि धीरे-धीरे उसे गति प्रदान करें। आपको खुद लगने लगेगा कि नकारात्मकता से दूर निकल कर आप प्रगति की राह पर अग्रसर हैं।

बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को क्या संदेश देना चाहेंगी?
मैं सभी छात्रों से यही कहूंगी कि छात्र अपनी पढ़ाई में कमी न करें। एंग्जायटी व स्ट्रेस अस्थाई चीजें होती हैं, इन्हें हावी न होने दें तथा दिक्कत होने पर तुरंत मनोचिकित्सक की सलाह लें। छात्र यह भी ध्यान दें कि यह स्ट्रेस कहीं उनके द्वारा ही तो नहीं उत्पन्न किया गया है। कोई छात्र फेल नहीं होना चाहता, पर किन्हीं कारणों से यदि वह सफल नहीं हो पाता तो पेरेंट्स को उसे यह आश्वासन देना चाहिए कि वे उसे पहले जैसा ही प्यार करेंगे। ऐसा करने से छात्र परीक्षा के भय व दबाव से मुक्ति पा लेंगे।
(संजीव चंद,हिंदुस्तान,दिल्ली,19.1.11)

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