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26 जनवरी 2011

महाराष्ट्रःसरकारी बाबुओं को बताना होगा 'की रिजल्ट एरिया'

अफसरशाही के नाकारापन से आजिज आए मंत्रियों की शिकायतों पर आखिरकार अमल शुरू हो गया है। नवनियुक्त मुख्य सचिव रत्नाकर गायकवाड ने सभी विभागों के सचिवों को कामकाज का त्रैमासिक और सालाना लेखाजोखा तैयार करने का आदेश पारित किया है।

सूत्रों के मुताबिक, बाबुओं की नकेल कसने के लिए गायकवाड़ ने कॉर्पोरेट्स की तर्ज पर उनसे 'केआरए' (की रिजल्ट एरिया) पेश करने को कहा है। पिछले हफ्ते उन्होंने सभी विभागों को इस बाबत लिखित निदेर्श दिए। इसमें कहा गया है कि सचिव अपने विभाग का पिछले दस सालों के कामकाज के साथ अगले पांच सालों की प्रोजेक्टेड ग्रोथ का ब्योरा भी पेश करें। बताया जाता है कि इससे अफसरों में बेचैनी व्याप्त है।

चूंकि डेडलाइन कभी भी आ सकती है, लिहाजा आनन-फानन में बाबुओं ने विभाग के टेक्नोसैवी कर्मचारियों को छांटकर उन्हें इसका जिम्मा सौंप दिया है। ये स्मार्ट कर्मचारी दस सालों का रेकॉर्ड खंगाल रहे हैं लेकिन सूत्रों के मुताबिक, असली दिक्कत आ रही है आनेवाले पांच साल का खाका खींचने में क्योंकि इसी पॉइंट पर बाद में उन्हें खींचा जा सकता है।


मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के सहसंचालक डॉ प्रविण शिनगारे ने स्वीकारा, 'हम पहले भी काम कर रहे थे, लेकिन अब सब कुछ रेकॉर्ड में होगा। मिसाल के तौर पर, हमें बताना होगा कि 14 मेडिकल कॉलेजों में अगर 1600 छात्र पढ़ रहे हैं, तो कितने पास हुए? हम मेडिकल कॉलेजों में हर साल 60 लाख लोगों का इलाज करते हैं। अगले पांच साल में तीन और मेडिकल कॉलेज खुलने पर कितने लोगों का इलाज कर पाएंगे? आदि।' 

एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'केवल उन्हीं बातों को केआरए में दिखाना है जिनकी गणना की जा सकती है ताकि दो-तीन महीने बाद रिव्यू में बताया जा सके कि कितना टार्गेट अचीव किया? अगर नहीं हुआ तो क्यों? अगर इसकी वजह खाली पद हैं, तो उसकी पूर्ति का भी प्रयास होगा।' 

उधर कुछ विभागों का प्रजेंटेशन हो भी चुका है। स्कूली शिक्षा सचिव संजय कुमार ने एनबीटी को बताया, 'हम अपना केआरए चीफ सेक्रेटरी को पेश कर चुके हैं।' 

मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, सीएम महाराष्ट्र को फिर से विकास के रास्ते पर देखना चाहते हैं। इसी कवायद में यह सब किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, कुछ अफसर इतने निकम्मे हैं कि केंद और राज्य द्वारा आबंटित पैसा वित्त वर्ष के अंत में लैप्स हो जाता है। इससे विकास कार्य अधूरा रह जाता है। इन्हीं लूप होल्स को पकड़ने के लिए 'केआरए' को रामबाण माना जा रहा है। 

वहीं जानकारों कहना है कि भले ही कॉर्पोरेट स्टाइल में हाई-फाई प्रजेंटेशन बनवाया जाए, लेकिन नाकारा अफसरों से काम करवाना फिर भी चुनौती से कम न होगा(कंचन श्रीवास्तव,नवभारत टाइम्स,मुंबई,26.1.11)।

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