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15 जनवरी 2011

स्कूली पढ़ाई का हाल बेहाल

स्कूली पढ़ाई को लेकर सरकार को खुशफहमी हो सकती है, लेकिन जमीनी हकीकत आंख खोलने वाली है। सरकार खुश है कि छह से चौदह साल के 97 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई करने लगे हैं और सरकार ने उनके लिए मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का कानून बना दिया है। सच्चाई यह है कि पांचवीं कक्षा के लगभग 50 प्रतिशत बच्चे कक्षा दो की भी किताब ठीक से नहीं पढ़ पाते। पांचवीं के लगभग 30 प्रतिशत बच्चों को सामान्य जोड़-घटाना व गुणा-भाग करना भी नहीं आता। जबकि 50 प्रतिशत स्कूल शिक्षा का अधिकार कानून के मापदंडों से कोसों दूर हैं। ग्रामीण भारत में स्कूली पढ़ाई की इस बदरंग तस्वीर को अपनी सलाना रिपोर्ट में उजागर किया है बीते पांच वर्षो से इसी क्षेत्र में काम कर रही गैर सरकारी संस्था प्रथम ने। रिपोर्ट बताती है कि सामान्य गणित की पढ़ाई में भी बच्चे न सिर्फ कमजोर हैं, बल्कि यह औसत दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। मसलन 2009 में पांचवीं कक्षा के जहां 38 प्रतिशत बच्चे गुणा-भाग दे लेते थे, 2010 में यह घटकर लगभग 36 प्रतिशत पर आ गया है। आलम यह है कि कक्षा एक के लगभग 36 प्रतिशत बच्चे एक से नौ तक की गिनती भी नहीं कर पाते। तस्वीर बदतर है। 2009 में जहां 70 प्रतिशत बच्चे एक से नौ तक की गिनती कर लेते थे, 2010 में यह प्रतिशत घटकर 66 प्रतिशत पर आ गया है। सबसे बड़ी समस्या सामान्य जोड़-घटाने को लेकर है। आलम यह है कि जूनियर हाईस्कूल स्तर पर दो तिहाई बच्चे अब भी रोजमर्रा का सामान्य जोड़-घटान नहीं कर पाते। इन कक्षाओं के 40 प्रतिशत बच्चे आयतन, क्षेत्रफल जैसे सवालों को नहीं हल कर पाते। चौथी कक्षा के 19 प्रतिशत बच्चे भी इस श्रेणी में हैं। पांचवीं कक्षा के औसतन 50 प्रतिशत बच्चे कक्षा दो तक की किताबें नहीं पढ़ पाते। पंजाब में बीते वर्षो में स्थिति में सुधार हुआ है। स्कूली शिक्षा के मामले में सरकार के पास दो तर्क सबसे बड़े हैं। एक-छह से चौदह साल के 96.5 प्रतिशत बच्चे अब स्कूलों में पढ़ रहे हैं। दूसरा-उसने इस आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का कानून बना दिया है। उप राष्ट्रपति मु. हामिद अंसारी द्वारा शुक्रवार को जारी रिपोर्ट बताती है कि लगभग आधे स्कूल शिक्षा का अधिकार कानून के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते। सर्वे टीम जिन स्कूलों तक पहंुचीं, उनमें 25 प्रतिशत में आफिस व स्टोर नहीं थे, 30 प्रतिशत स्कूलों में एक या दो ही शिक्षक थे तो 38 प्रतिशत में स्कूल के मैदान नहीं थे(दैनिक जागरण,दिल्ली,15.1.11)।

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