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21 जनवरी 2011

एमसीडी में फर्जी नियुक्तियां

एमसीडी में कर्मचारियों की संख्या को लेकर हाई कोर्ट में पेश की गई पुलिस की स्टेट्स रिपोर्ट से स्पष्ट है कि नियुक्तिों में भारी पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। जांच के घेरे में आए सफाई कर्मचारियों की संख्या के बारे में पुलिस ने जिन तीन स्त्रोतों से कर्मियों की संख्या के आंकड़े जुटाए हैं, इनमें करीब बीस हजार का भारी अंतर है। जांच से पता चलता है कि कर्मचारियों की नियुक्तियों में न पारदर्शिता बरती गई थी और न कोई लेखा-जोखा रखा गया था। यह गड़बड़ी इशारा करती है कि एमसीडी में फर्जी ढंग से नियुक्तियां कर करोड़ों की चपत लगाई गई है। यह भी निहायत जरूरी है कि जांच का दायरा सिर्फ कर्मचारियों की गणना करने तक सीमित न रखा जाए और उन तथ्यों की भी गहनता से पड़ताल की जानी चाहिए, जिस वजह से इतनी बड़ी संख्या में फर्जी नियुक्यिां की गईं। ऐसी कोई जांच निरर्थक ही कही जाएगी, जिसमें असली गुनहगारों को ही नहीं पकड़ा जाए। कारण चाहे जो हो, जांच से यही प्रतीत होता है कि पुलिस अभी सही दिशा की ओर नहीं बढ़ पाई है। जहन में यह सवाल उठना लाजिमी ही कि क्या उन लोगों पर शिकंजा कसा जा सकेगा, जिन्होंने ऐसी फर्जी नियुक्तियां की हैं? काबिलेगौर है कि वर्ष 2009 में एमसीडी में उपस्थिति के लिए बायोमैट्रिक प्रणाली लागू करने के बाद ही फर्जी निुयक्तियां किए जाने का खुलासा हुआ था। बाद में एक गैरसरकारी संस्था ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मामले की जांच की मांग की थी। कोर्ट ने पुलिस को जांच के आदेश दिए थे। असल में, एमसीडी की कार्यप्रणाली ही भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी जननी है। एमसीडी काऐसा कौन सा विभाग है, जो लोगों को राहत और भरोसा दिलाता है। सभी जानते है कि शहर की बेहतरी की बजाय धन की बंदरबाट, लोगों की गाढ़ी कमाई पर मौज करते अफसर और ठेकेदार तथा घूसखोरी एमसीडी की पहचान हैं। सरकार से लेकर आम जनता तक एमसीडी के कामकाज को लेकर अक्सर सवाल उठाते रहे हैं। इसकी ठोस वजह हैं, पचास हजार सफाई कर्मचारियों के बावजूद दिल्ली की सफाई व्यवस्था दोयम दर्जे की है। एमसीडी की डिस्पेंसरियां और अस्पताल खुद इलाज के लिए मोहताज हैं। लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि पुलिस अपनी जांच को किसी निष्कर्ष तक पहुंचाए(संपादकीय,दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,21.1.11)।

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