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01 फ़रवरी 2011

गणित-विज्ञान में अमेरिका से आगे है चीन

विज्ञान, गणित और पठन में १५ वर्षीय छात्रों की योग्यता का अंतरराष्ट्रीय तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए वर्ष २००० से परीक्षण किया जा रहा है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के समन्वयन में यह हर तीसरे वर्ष आयोजित किया जाता है। परीक्षण का नाम पीसा (प्रोग्रेस फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट) है। २००९ में आयोजित इस प्रतियोगिता में औद्योगिक दृष्टि से विकसित ६० देशों ने भाग लिया था। परिणाम की घोषणा दिसंबर २०१० में की गई। चीन ने २००९ में बड़ी चतुराई से पहली बार भागीदारी की थी। सारी दुनिया और विशेषकर अमेरिका के लिए यह चौंकाने वाली बात थी कि चीन ने केवल अपने शोकेस शहर शंघाई के छात्रों को ही इस प्रतियोगिता में उतारा था। यहां के छात्रों से चुपचाप इतनी तैयारी कराई गई कि उन्होंने विज्ञान और गणित में सर्वोच्च अंक ६०० प्राप्त कर लिए। गणित में सिंगापुर दूसरे और हांगकांग तीसरे स्थान पर रहे। विज्ञान में फिनलैंड ने दूसरा और हांगकांग ने तीसरा स्थान पाया। लगभग प्रत्येक देश में कम से कम ४५०० छात्रों का परीक्षण किया गया था। छात्रों का चयन रेंडम विधि से किया गया था। टेस्ट का अनुवाद भागीदारी करने वाले प्रत्येक देश की भाषा में किया जाता है। प्रत्येक देश प्रश्नों का पूर्व-अवलोकन यह देखने के लिए कर सकते हैं कि प्रश्नों में किसी तरह का पूर्वग्रह नहीं है और वे सही प्रसंग में पूछे गए हैं। यद्यपि इस प्रतियोगिता में ६० देशों ने भाग लिया था, मगर अमेरिका की तुलना केवल सर्वाधिक उद्योगीकृत ३३ देशों से ही की गई। इनमें जापान, जर्मनी और साउथ कोरिया जैसे देश ही सम्मिलित हैं। इन तैंतीस देशों में अमेरिका का नंबर १५ वां है। पिछले वर्षों में छात्रों की उपलब्धि बढ़ाने का पूरा प्रयास करने के बाद भी अमेरिकी छात्रों की गणित में उपलब्धि औसत के नीचे ही रही है। साठ देशों की सूची में अमेरिका का गणित में ३१ वां और विज्ञान में २३ वां स्थान है। शंघाई (चीन) के छात्रों ने गणित में कुल ६०० (सर्वोच्च) अंक प्राप्त किए हैं, जबकि अमेरिका के छात्रों ने केवल ४८७। अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों ने निराश होकर कहा है कि हम औद्योगिक देशों के मध्य में हैं, पर वहां नहीं जहां हम होना चाहते हैं। 

भारत भी अब एक उद्योगीकृत देश बन गया है। इसलिए हमें भी पीसा टेस्ट में भाग लेने का हौसला दिखाना चाहिए। हमारे स्कूलों में गणित, विज्ञान और पठन के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, आवश्यकता है बस उसे तराशने और अवसर देने की। हमारे पड़ोसी चीन ने शिक्षा के विस्तार और स्तरोन्नयन के लिए भौतिक एवं मानवीय संसाधन मुहैया कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। क्या हम अपने यहां गणित, विज्ञान और पठन की शिक्षा समुन्नत करने के लिए चीन और एशिया पैसेफिक के छोटे-छोटे देशों से कुछ सबक नहीं ले सकते?(उमराव सिंह चौधरी,नई दुनिया,1.2.11)

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