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01 फ़रवरी 2011

भारतीय छात्रों के साथ अमरीका का व्यवहार अस्वीकार्य

अमेरिका में भारतीय छात्रों के टखने (एंकल मॉनिटर) के चारों ओर रेडियो कॉलर लगाने पर भारत ने अपनी नाराजगी जताते हुए उनके साथ नरम रुख अपनाए जाने की अपील की थी, लेकिन अमेरिका ने इसका टका सा जवाब दे दिया है। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने टखने में मॉनिटर लगाने का पूरी तरह बचाव किया और लिखित बयान जारी करके कहा है कि वह निगाह रखने के लिए अपने देश में बड़े पैमाने पर ऐसा करता रहता है। यह अमेरिकी निगरानी का एक मानक तरीका है। उनके द्वारा की जाने वाली विभिन्न जांचों का हिस्सा है। इसे किसी को अनावश्यक तंग करने अथवा आपराधिक गतिविधि में शामिल होने से जोड़कर देखना सही नहीं है।

अमेरिका के अनुसार यह कॉलर आईडी इसलिए लगाया जाता है ताकि अधिकारी लोगों पर नजर रख सकें। उनकी आवाजाही आदि की निगरानी की जा सके।

गौरतलब है कि भारतीय छात्रों के टखने पर रेडियो कॉलर लगाने को भारत ने काफी गंभीरता से लिया था। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा और प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यालार रवि ने इसके प्रति नाराजगी जाहिर की थी। विदेश मंत्री ने इसे अमानवीय तरीके की संज्ञा दी थी। व्यालार रवि ने सभी छात्रों को निर्दोष बताते हुए अमेरिका से छात्रों के साथ नरम व्यवहार की अपील की थी। इसी विषय पर आज नई दुनिया का संपादकीय भी देखिएः

अमेरिका के ट्राई-वैली नामक एक फर्जी विश्वविद्यालय की ठगी के शिकार हुए सैकड़ों भारतीय छात्रों के भविष्य पर तो ग्रहण लग ही चुका है, उनके साथ वहां अमानवीय व्यवहार भी किया जा रहा है। अपना कॅरिअर बचाने के लिए वे विभिन्न कॉलेजों में गुहार लगा रहे हैं तथा डिपोर्टेशन से बचने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। विश्वविद्यालय पर छापे के बाद अमेरिकी अधिकारियों ने पूछताछ के नाम पर अनेक छात्रों को गिरफ्तार किया जिन्हें बाद में जमानत पर छोड़ा गया। सबसे खलने वाली बात तो यह है कि निगरानी के लिए बहुत से छात्रों के टखने में रेडियो कॉलर पहनाया गया जो प्रायः अभयारण्यों में जानवरों की गतिविधियों की जानकारी रखने के लिए उन्हें पहनाया जाता है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह इमिग्रेशन में जालसाजी का मामला है। हो सकता है कि उनकी बात सच हो, लेकिन इसके लिए भारतीय छात्रों को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? ट्राई-वैली विश्वविद्यालय अपने यहां दाखिले के लिए बाकायदा विज्ञापन देता है। वह कैलिफोर्निया जैसे प्रसिद्ध शहर में अवस्थित है। आखिर अमेरिकी अधिकारियों की नजर उस फर्जी संस्थान पर क्यों नहीं गई? अगर वह विश्वविद्यालय फर्जी है तो वहां दाखिले के लिए अमेरिकी दूतावास ने वीजा कैसे जारी किया? जाहिर है कि अगर यह इमिग्रेशन में जालसाजी का मामला है, तब भी इसके लिए छात्रों से ज्यादा अमेरिकी व्यवस्था जिम्मेदार नजर आती है। इतना ही नहीं, छात्रों के साथ पशुवत व्यवहार करने का अधिकार उसे कहां से मिल जाता है? उनके इस व्यवहार को किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। वास्तव में यह दंभ है और लक्षण है अमेरिकी कार्य-शैली का। यही दंभ उसे अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने का आधार प्रदान करता है। भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने इसे उचित ही अमानवीय बताया है। अमेरिका को समझना चाहिए कि ये छात्र कोई अपराधी नहीं हैं जो उनके साथ इस तरह का मनुष्य विरोधी व्यवहार किया जाए। सच है कि इस घटना के लिए विदेश से डिग्री हासिल करने की भारतीय मानसिकता भी कुछ हद तक जिम्मेदार है जो कानूनी खतरों को नजरअंदाज करती है लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी अधिकारियों का व्यवहार किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है। इसलिए अमेरिका को इन भारतीय छात्रों के मामले में उदार रुख अपनाना चाहिए और उन्हें बेवजह अपमानित नहीं किया जाना चाहिए। छात्रों की परेशानी के मद्देनजर भारत सरकार को भी उचित कदम उठाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके करियर को कोई नुकसान न पहुंचे।

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