उत्तराखंड में निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना किसी नीति की नहीं, बल्कि लालफीताशाही के रहमोकरम की मोहताज है। एक ओर उच्चस्तरीय समिति गठित कर नीति बनाने का ढकोसला किया जा रहा है, वहीं अपनों पर करम के लिए नीति के बगैर ही दो निजी विवि की स्थापना की कार्यवाही शुरू की जा चुकी है, जबकि 15 प्रस्ताव अधिकारियों की कृपा का इंतजार कर रहे हैं। उच्च शिक्षा और निजी विश्वविद्यालयों को लेकर सरकार के इस रवैये का खुलासा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ है। नीति नहीं होने से प्रदेश में मनमाने ढंग से विश्वविद्यालयों की स्थापना की होड़ लगी है। इस खेल की कमान सरकार के हाथ होने से कामयाबी उसी के हाथ लग रही है, जिसे सिस्टम से जूझने के गुर पता हैं। शेष को नीति नहीं होने की आड़ में टरकाया जा रहा है। आरटीआई के तहत शासन ने बीती पांच जनवरी को दी गई जानकारी में यह माना कि राज्य सरकार ने निजी विवि स्थापित करने के संबंध में नीति प्रख्यापित नहीं की है। अलबत्ता, निजी विवि स्थापित करने को शासन को मिले प्रस्तावों का निर्धारित मानकों के अनुरूप परीक्षण करने व अर्ह प्रस्तावों पर संस्तुति के लिए उच्च शिक्षा प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में 18 नवंबर, 2009 को उच्च स्तरीय कमेटी गठित की जा चुकी है। इसे ढोंग नहीं तो क्या कहा जाए, कि नीति के बगैर ही दो निजी विवि वनस्थली विद्यापीठ और लिंग्याज स्थापित करने को शासन स्तर पर कार्यवाही चल रही है। तकरीबन ढाई माह पहले उच्च स्तरीय समिति की बैठक सचिवालय के आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र सभागार में प्रस्तावित की गई, लेकिन उच्च शिक्षा प्रमुख सचिव की गैर मौजूदगी के चलते बैठक नहीं हो सकी। इस वजह से बैठक में शामिल होने आए कुलपतियों को बैरंग लौटना पड़ा। इस उच्चस्तरीय बैठक का ड्रामा यह रहा कि प्रस्तुतिकरण के नाम पर तकरीबन 15 निजी विवि के प्रस्ताव शासन के पास पड़े हैं। एक ओर इन प्रस्तावों पर विचार करने का ढकोसला किया जा रहा है, दूसरी ओर निर्धारित प्रक्रिया के बगैर ही दो निजी विवि के प्रस्तावों पर गौर फरमाया जा रहा है। इनमें एक ख्यातिप्राप्त विवि की प्रदेश में स्थापना की घोषणा खुद मुख्यमंत्री कर चुके हैं। उनकी घोषणा से पहले उक्त विवि से कोई प्रस्ताव शासन को नहीं मिला। राजस्थान के इस विवि को हर वर्ष तकरीबन दो लाख रुपये उत्तराखंड सरकार मुहैया करा रही है। इसके एवज में विवि के हर कोर्स में एक-एक सीट प्रदेश के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित की गई है। लेकिन आरक्षित सीटों पर चयन का आधार सार्वजनिक नहीं किया गया( रविंद्र बड़थ्वाल,दैनिक जागरण,देहरादून,2.2.11)।
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