बोर्ड की परीक्षाओं का बिगुल बज गया है और अब हर वह छात्र जी-तोड़ मेहनत में जुटा है, जो बारहवीं के बाद अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए इस परीक्षा में सफलता की चाह रखता है। पर परेशानी इस बात की है कि भविष्य को लेकर सजग ये छात्र न सिर्फ बारहवीं बोर्ड परीक्षा, बल्कि इसके तुरंत बाद होने वाली आईआईटी-जेईई, कॉमन लॉ एडमिशन टैस्ट, एआईपीएमटी और एआईईईई की परीक्षा की तैयारी भी कर रहे हैं।
इंजीनियरिंग, लॉ व मेडिकल में दाखिले के इच्छुक छात्रों के लिए आयोजित की जाने वाली देश की इन प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी छात्र ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश करते ही शुरू कर देते हैं, जबकि बारहवीं बोर्ड परीक्षाओं के तुरंत बाद इन परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। यही कारण है कि छात्र इस पशोपेश में रहते हैं कि आखिर किस तरह से इन परीक्षाओं की आखिरी दौर की पढ़ाई को अंजाम दिया जाए, ताकि दोनों ही परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हो सके। बारहवीं के ऐसे ही छात्रों को सीबीएसई काउंसलर संगीता भाटिया की सलाह है कि बच्चे बेवजह परेशान होने के बजाय जरूरत के हिसाब से तैयारी करें और आगे बढ़ें। आंकड़ों की बात करते हुए वह बताती हैं कि सीबीएसई की ओर से ली जाने वाली एआईईईई की परीक्षा के परिणामों पर नजर डालें तो सफल होने वाले 90 फीसदी छात्र-छात्रओं का बारहवीं का रिजल्ट भी 80 से 85 फीसदी के बीच होता है। वह बताती हैं कि अक्सर बच्चे यह मान लेते हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और सामान्य बोर्ड की तैयारी अलग-अलग करना जरूरी है, जबकि असलियत तो यह है इन दोनों ही तरह की परीक्षाओं की तैयारी एक साथ अंजाम देने से सफलता हासिल की जा सकती है। एआईईईई की बात करें तो इसमें 11वीं-12वीं की पढ़ाई पर केन्द्रित ऐसे सवाल पूछे जाते हैं, जो एप्लीकेशन बेस्ड होते हैं।
यदि बच्चे ने कक्षाओं में गम्भीरता से पढ़ाई नहीं की होगी तो प्रवेश परीक्षाओं की बाधा से पार पाना कतई मुमकिन नहीं है। संगीता भाटिया की मानें तो यह पढ़ाई प्रवेश परीक्षाओं में सफलता के लिए आधार ज्ञान प्रदान करती है, इसलिए अलग-अलग तैयारी की जरूरत ही नहीं है।
पूसा रोड स्थित स्प्रिंरगडेल्स स्कूल की प्रिंसिपल अमिता मूला वॉटल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी को लेकर छात्रों की क्षमताओं को अहम मानती हैं। वह बताती हैं कि उनके स्कूल में भी ऐसे छात्रों की भारी संख्या है, जो बारहवीं बोर्ड की परीक्षाओं के साथ-साथ इंजीनियरिंग, मेडिकल और लॉ की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। यहां अक्सर ऐसे छात्रों पर नजर रखी जाती है, जो दोहरे स्तर पर मेहनत कर रहे होते हैं। इन छात्रों की क्षमताओं का आकलन साल भर जारी रहता है।
वह बताती हैं कि अक्सर पेरेंट्स टीचर्समीटिंग के दौरान अभिभावकों के साथ हम इस बात पर बहस करते हैं कि आपका बच्चा दोहरे बोझ को झेल पाने के लायक नहीं है, सो इसे फिलहाल एक ही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। वह बताती हैं कि ऐसा इसलिए किया जाता है कि ऐसा न हो कि दो नावों की सवारी के चक्कर में बच्चा असफल हो जाए। अमिता बताती हैं कि इस तरह की प्रक्रिया में अक्सर छात्र व उनके अभिभावक, दोनों को ही काउंसिलिंग की जरूरत होती है। इसके नतीजे बेहतर होते हैं। जो छात्र प्रवेश परीक्षा और बोर्ड में बेहतर प्रदर्शन की क्षमता रखते हैं, उन्हें स्कूली शिक्षकों की ओर से बराबर सहयोग प्रदान किया जाता है।
कैसे करें तैयारी
बोर्ड व प्रवेश परीक्षा, दोनों ही बाधाओं से पार पाने में जुटे छात्रों को सलाह दी जाती है कि वह अपने लक्ष्य पर नजर रखते हुए आगे बढ़ें। चूकि बोर्ड की परीक्षाएं अब नजदीक हैं और इनके लिए की गई पढ़ाई का इस्तेमाल प्रवेश परीक्षाओं में भी होगा, इसलिए यह सही रहेगा कि समय रहते छात्र-छात्राएं प्रवेश परीक्षा से परे बारहवीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए जुट जाएं। बोर्ड की डेटशीट पर नजर डालें तो 1 मार्च से शुरू होने वाली परीक्षाएं 13 अप्रैल तक चलेंगी। इसमें इंजीनियरिंग ग्राफिक्स का पेपर 1 अप्रैल को है, यानी प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों को 1 अप्रैल के बाद छुट्टी मिल जाएगी और वे अपनी परीक्षाओं की तैयारी में जुट सकते हैं।
गैप ईयर है समाधान
प्रवेश परीक्षाओं और बोर्ड परीक्षा की टेंशन में यदि आप किसी एक का चुनाव करना चाहते हैं तो पहली प्राथमिकता के तौर पर बोर्ड परीक्षा को चुनना बेहतर होगा। विशेषज्ञों की मानें तो प्रवेश परीक्षा के फेर में बोर्ड के नतीजों को चौपट करना समझदारी नहीं है, बल्कि आप यदि इस बार बोर्ड परीक्षा अच्छे अंक प्रतिशत के साथ पास कर लेते हैं तो एक साल गैप ईयर के तौर पर इस्तेमाल कर आप प्रवेश परीक्षा की बाधा भी पार कर सकते हैं। इस तरह आप जरा-सी समझदारी से दोनों ही अहम परीक्षाओं में सफल होकर अपना भविष्य बना सकते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
प्रवेश परीक्षाओं में सफलता के लिए स्कूली पढ़ाई जरूरी
प्रवेश परीक्षाओं के आयोजन को लेकर मंत्रालय की सख्त हिदायत है कि इन परीक्षाओं की तैयारी का आधार स्कूली शिक्षा होनी चाहिए। 12वीं के छात्र इन परीक्षाओं के लिए पात्र होते हैं, सो ज्यादातर 11वीं-12वीं केन्द्रित प्रश्नपत्र ही आते हैं। इन परीक्षाओं में बच्चों की एनालिटिकल समझ को परखा जाता है। इसके माध्यम से पता लगाया जाता है कि बच्चा एप्लीकेशन जनता भी है या नहीं।
आईआईटी की बात करें तो इसकी तैयारी तो आठवीं-नौवीं से ही शुरू हो जाती है और इसके लिए बच्चों का फोकस्ड होना जरूरी है। गंभीरता के स्तर पर प्रवेश परीक्षाओं के लिए छात्रों को 11वीं से ही मन बना लेना चाहिए और तैयारी में जुट जाना चाहिए। इस तरह उनके पास दो साल में पर्याप्त नोट्स तैयार हो जाते हैं, जो उन्होंने पढ़े होते हैं।
आर. एल. त्रिखा, (प्रमुख, डिस्टेंस एजुकेशन, फिटजी)
दिमाग मुक्त रखो, बाकी सब अपने आप होगा - सौरव
सफलता के रास्ते में दबावों का आना आम बात है। जो दबाव में बिखर जाते हैं, उनकी बात कोई नहीं करता, जो दबावों से निबटते हुए अपना रास्ता बना लेते हैं, वे विजेता कहलाते हैं। टैस्ट क्रिकेट में भारत के सफलतम कप्तान सौरव गांगुली का यही कहना है। वे कहते हैं, दबाव तो आएंगे, आपको उनसे निबटना सीखना होगा। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। दादा की सलाह है कि दबाव को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने देना चाहिए। बाकी सब अपने आप होगा। तो, सफल लोगों की बात ध्यान में रखें और दबाव को जीत कर सफलता की राह गढ़ें।
एक नजर में प्रवेश परीक्षाएं
आईआईटी जेईई -
10 अप्रैल, 2011
एआईपीएमटी -
3 अप्रैल, 2011 प्रारम्भिक परीक्षा तथा 15 मई, 2011 मुख्य परीक्षा
एआईईईई - 1 मई 2011
कॉमन लॉ एडमिशन टैस्ट-
15 मई 2011
जरूरी नुस्खे
प्रवेश परीक्षाओं और सामान्य बोर्ड की तैयारी अलग-अलग करना जरूरी नहीं है।
प्रवेश परीक्षाओं के लिए छात्रों को 11वीं से ही मन बना लेना चाहिए। बोर्ड की पढ़ाई ध्यान से करें, क्योंकि एआईईईई में 11वीं व 12वीं की पढ़ाई पर केन्द्रित एप्लीकेशन बेस्ड सवाल पूछे जाते हैं।
जब बोर्ड परीक्षा की तैयारी करें तो कुछ समय के लिए प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी से विराम ले लें
जो छात्र दोहरा बोझ झेल पाने लायक नहीं है, उन्हें एक ही दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। दो नावों की सवारी में डूबने का खतरा रहता है।
प्रवेश परीक्षाओं और बोर्ड परीक्षा की टेंशन में से अगर किसी एक को चुनना है तो बोर्ड को चुनना बेहतर रहेगा
(पायल रावत,हिंदुस्तान,दिल्ली,1.2.11)
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