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01 फ़रवरी 2011

मुस्लिम बच्चों ने किया स्कूलों की ओर रुख

मुसलमानों की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर जस्टिस सच्चर की रिपोर्ट के खुलासे के बाद समुदाय के लोगों का कुछ खास फायदा हुआ या न हुआ हो, लेकिन पढ़ाई का मतलब उनकी समझ में जरूर आ गया है। शायद यही वजह है कि मुस्लिम बच्चों ने तेजी से स्कूल का रुख कर लिया है। खास बात यह है कि स्कूलों में मुस्लिम बच्चों की तादाद साल दर साल बढ़ रही है। सूत्रों के मुताबिक तीन साल पहले देश में कुल मुस्लिम बच्चों में से साढ़े दस प्रतिशत ही प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे थे। 2008-09 में इसमें थोड़ा और सुधार हुआ, लेकिन 2009-10 में यह लगभग साढ़े तेरह प्रतिशत तक पहंुच गई। इस समुदाय के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में राष्ट्रीय स्तर पर इस रुझान की एक बड़ी वजह यह भी है कि ज्यादा बड़ी मुस्लिम आबादी वाले उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों के मुस्लिम बच्चों के दाखिले में खासी वृद्धि हुई है। बीते तीन वर्षो में पश्चिम बंगाल में प्राइमरी स्कूलों में मुस्लिम बच्चों का दाखिला दर 28 प्रतिशत से 32.50 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 9.34 प्रतिशत से बढ़कर 10.31 प्रतिशत और बिहार में 11.27 से बढ़कर 13.83 प्रतिशत तक पहंुच गई। झारखंड में भी बीते तीन वर्षों में इस दाखिले में तीन प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दाखिले में वृद्धि की लगभग ऐसी ही रफ्तार अपर प्राइमरी स्कूलों में भी देखने को मिल रही है। अहम बात यह है कि मुस्लिम समुदाय की लड़कियों ने भी पढ़ने में रुचि लेना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि जस्टिस सच्चर ने अपनी रिपोर्ट में मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई की सबसे बदतर स्थिति को सुधारने पर खास जोर देने की पैरवी की थी। सूत्र बताते हैं स्कूली पढ़ाई में पिछड़े वर्ग के बच्चों के दाखिले में अलग-अलग राज्यों में बढ़ने-घटने के भी संकेत हैं। मसलन राष्ट्रीय स्तर पर तो इसमें बीते वर्षो में हल्की गिरावट दर्ज की गई, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में पिछड़े वर्ग के बच्चों के दाखिले में वृद्धि हुई है(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,1.2.11)।

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