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12 जुलाई 2011

भारतीय चिकित्सा परिषद में पंजीकरण के मानक बदले

भारतीय चिकित्सा परिषद ने पंजीकरण के मानकों में फेरबदल कर दिया गया है। इससे उत्तराखंड में प्रैक्टिस कर रहे हजारों आयुर्वेदिक व यूनानी चिकित्सकों के पंजीकरण का रास्ता साफ हो गया है। वर्तमान में भारतीय चिकित्सा परिषद में आयुव्रेदिक एवं यूनानी चिकित्सकों का पंजीकरण किया जा रहा है। इसके लिए शासन की ओर से विगत वर्ष नीति बनायी गई थी। इसके तहत बीएएमएस डिग्री धारी चिकित्सकों के पंजीकरण में कोई समस्या नहीं आयी, लेकिन पैरा 2, 3 व 4 में पंजीकृत आयुर्वेदिक यूनानी चिकित्सकों के पंजीकरण में दिक्कते पैदा होनी लगी। इसके चलते प्रदेश में कार्यरत इन चिकित्सकों का पंजीकरण नहीं हो पा रहा था। इस मामले को आयुष मेडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डा. अखिलेश भटनागर की ओर से शासन के समक्ष उठाया गया। उन्होंने कहा की पंजीकरण के लिए जो नियमावली तैयार की गई है। उसमें स्थिति स्पष्ट न होने से पैरा 2,3 व 4 के तहत आने वाले आयुर्वेद शास्त्री, आयुर्वेद भास्कर, आयुव्रेद शिरोमणी, वैध विशारद, डीएएम, डीयूएम करने वाले चिकित्सकों का पंजीकरण नहीं हो पा रहा है। इससे प्रदेश में प्रैक्टिस कर रहे लगभग दस हजार चिकित्सक अपना पंजीकरण कराने से वंचित रह गए। अब शासन की ओर से पंजीकरण के लिए नियमावली में संशोधन कर दिया गया है। प्रमुख सचिव आयुष राजीव गुप्ता की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि पूर्ववर्ती राज्य यूपी के भारतीय चिकित्सा परिषद से पंजीकरणों के संबंध में प्रमाणित प्रति उपलब्ध होने पर ही उत्तराखंड में परिषद में पंजीकरण होगा। इन अभ्यार्थियों को शैक्षिक व चिकित्साभ्यास की डिग्री, डिप्लोमा व अन्य अभिलेखों की प्रति भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड में पंजीकरण से पहले उपलब्ध करानी होगी। उत्तर प्रदेश में पंजीकृत चिकित्सकों में से जो चिकित्सक उत्तराखंड की परिधि में वर्तमान में कार्य कर रहे है, उन चिकित्सकों का ही उत्तराखंड में पंजीकरण किया जाएगा। इसके लिए पंजीकरण से पहले इन चिकित्सकों को उत्तराखंड के भौगोलिक क्षेत्र में चिकित्सा अभ्यास का प्रमाण पत्र देना अनिवार्य किया गया है(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,12.7.11)।

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