मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

20 जुलाई 2011

यूपीःनौनिहाल पढ़ें तो पढ़ें कैसे बिन किताब के

माध्यमिक शिक्षा परिषद व बेसिक शिक्षा परिषद से संबद्ध विद्यालयों में किताबों की कमी से त्राहि-त्राहि मची है। नवीन शिक्षा सत्र शुरू एक पखवारा बीत चुका है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, लेकिन बस्ते में पूरी किताबें नहीं हैं। सिर्फ प्रदेश सरकार के परिषदीय विद्यालय और यूपी बोर्ड ही नहीं केंद्रीय शिक्षा बोर्डो के विद्यालयों में चलने वाली पुस्तकों की उपलब्धता का हाल भी ऐसा ही है। जानकारों की माने तो पहली से आठवीं तक की पुस्तकें अगस्त के अंत तक ही स्कूलों तक पहुंचेगी। कक्षा नौ से लेकर 12 तक की गणित, हिंदी और अंग्रेजी की सरकारी पुस्तकें बाजार से नदारत हैं। किताबों की किल्लत का यह आलम केवल प्रदेश के कुछ हिस्सों में हो ऐसा नहीं है। कमोवेश ऐसे हालात सभी जगह हैं। राजधानी लखनऊ में जहां इस विभाग के मंत्री से लेकर उच्चाधिकारी तक बैठते हैं, वहां भी परिस्थितियां ठीक वही हैं, जो महानगरों के आसपास के जिलों की हैं। छोटे शहरों और कस्बों में हालात और भी बदतर हैं। दुकानदार अनुपलब्धता की बात कह कर किताबों के साथ कुछ न कुछ और खरीदने की बाध्य करने के साथ ही अधिक दाम वसूलने से नहीं चूक रहे हैं। रही सही कसर बदले पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी है। हिंदी, अंग्रेजी, गणित, प्रारंभिक गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गृह विज्ञान, वाणिज्य, कला, कंप्यूटर व संस्कृत सहित अन्य विषयों की अब एक-एक पुस्तक ही आ रही है। इसमें से सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी और प्रारंभिक गणित की पुस्तकें लखनऊ के बाजार से नदारद हैं। चूंकि अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान की पुस्तकें ज्यादातर विद्यार्थियों के कोर्स में शामिल हैं, इसलिए इसे लेकर बेचैनी अधिक है। वहीं फुटकर विक्रेता डीलरों पर छपे हुए अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक पर पुस्तक बेंचने का आरोप लगा रहे हैं। मुरादाबाद मंडल के विद्यालयों में पुस्तकों का संकट बना हुआ है। समस्या अकेले आठवीं तक कक्षाओं में नहीं है। हाईस्कूल के तमाम विषयों की किताबें नहीं मिल पाई है। गणित, सामाजिक विज्ञान समेत कई विषयों की किताबें बाजार से गायब है। बरेली व अलीगढ़ में शिक्षा विभाग के अफसर किताबों के लिए लखनऊ की ओर टकटकी लगाए है। इलाहाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ने वाले 12,23,747 के लगभग बच्चों को बिना किताब के ही पढ़ाई करनी होगी, क्योंकि प्राथमिक स्कूलों में मुफ्त में मिलने वाली किताब अब तक नहीं पहुंची है। कक्षा छह से 12 तक की सभी पुस्तकें सुलभ नहीं हैं। अभिभावक यूपी बोर्ड की कक्षा छह, सात और आठ की पुस्तकें ढूंढ़ रहे हैं, लेकिन वे अनुपलब्ध हैं। इन कक्षाओं की हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और संस्कृत की पुस्तकें बाजारों से नदारद हैं। क्वींस इंटर कॉलेज, लखनऊ के प्रधानाचार्य डॉ.आरपी मिश्र का मानना है कि विद्यालयों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है, ऐसे में कोर्स की किताबें न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। कक्षा दस की अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान की किताबें बाजार में नहीं हैं। बच्चे बिना पुस्तकों के ही किसी तरह पढ़ाई कर रहे हैं। पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। दुकानदार बताते हैं कि प्राइमरी और जूनियर स्कूलों की पुस्तकों का टेंडर तीन माह विलंब से मंजूर किया गया है, जिससे पुस्तकों का टोटा है। बाजारों में यूपी बोर्ड की नए संस्करण की केवल कक्षा नौ, दस, 11 और 12 की ही पुस्तकें बिक रही हैं। आगरा में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की 10 वीं और 12वीं की सत्र 2011-12 की पाठ्य पुस्तक अभी तक बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। सामाजिक विज्ञान, गणित की एक-एक पुस्तक ही मिल रही हैं। नई किताबों की आमद कब तक होगी, यह न तो डीआइओएस ऑफिस को पता है और न ही स्कूल संचालकों को। गोरखपुर और वाराणसी में जो किताबें सुलभ हैं, वे भी प्रिंट से अधिक मूल्य पर बेची जा रही हैं। लखनऊ के अभिभावक अश्रि्वनी कुमार सिंह कहते हैं कि बाजार में कई किताबें नहीं हैं। कक्षा दस की सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी और प्रारंभिक गणित की किताबें अब तक नहीं मिल सकी है, बाजार के कई चक्कर लगा चुका हूं। जो किताबें बाजार में हैं, उन्हें भी दुकानदार इसी शर्त पर दे रहे हैं कि साथ में गाइड या कॉपियां व अन्य स्टेशनरी खरीदनी होगी वहीं इलाहाबाद के अभिभावक डीके घोष व अमरनाथ खरे पुस्तकें खरीदने को लेकर परेशान हैं, लेकिन वे नहीं मिल पा रही हैं। प्रधानाचार्य परिषद के कोषाध्यक्ष गोरखलाल श्रीवास्तव कहते हैं कि शासन को अब अपने प्रयोग बंद कर देने चाहिए और सत्र शुरू होने से पहले ही पाठ्य पुस्तकों और किताबों के बारे में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए(दैनिक जागरण,लखनऊ,20.7.11)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।