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14 जुलाई 2011

डीयू के कोटे पर विवाद

उम्मीद की जानी चाहिए कि ओबीसी की सीटें उन्हीं के छात्रों को दिये जाने की दिल्ली विविद्यालय की घोषणा विवाद पर विराम साबित होगी। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम फैसला आना अभी बाकी है। उसके किसी के पक्ष या विपक्ष में होने की स्थिति में बहस एक बार फिर गरम हो सकती है। दरअसल, ताजा विवाद दाखिले के आधार को लेकर है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय 12 वीं की मार्कशीट को अंतर स्नातक कक्षा में नामांकन के लिए देश भर में मानक मानने पर जोर दे रहा है। वहीं डीयू प्रशासन विषयवार अलग-अलग मानक अपनाने को जायज ठहराता है। ओबीसी के पक्षकार, सामान्य वर्ग के छात्रों से 10 अंक के अंतर को और बढ़ाये जाने का तर्क दे रहे हैं। इनका कहना है कि बिना और छूट दिये वह सामान्य वर्ग की बराबरी नहीं कर सकते। इस तरह, वे शिक्षा को समान अवसर के रूप में मुहैया कराने के सरकार के संकल्पों का लाभ उठाने से ही छूट जाएंगे। ओबीसी छात्र डीयू प्रशासन या विभिन्न कॉलेजों के रवैये से आशंकित भी हैं, जो सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए उनके हिस्से के अवसरों को जब-तब लंगड़ी मार देते हैं। वे अदालत में यही दलील दे रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक चार हजार सीटें पिछले सत्र में खाली चली गई, जो ओबीसी कोटे से भरी जानी थीं। डीयू ने यह नहीं बताया कि वे सीटें सामान्य छात्रों को दी या नहीं। निश्चित रूप से होना यही चाहिए कि कोटे की सीटें उसके योग्य उम्मीदवार को ही दी जाएं। उसके साथ ही यह तय करना भी आवश्यक है कि कितने अंकों वाले छात्रों को यह सीटें दी जाएंगी। क्या मानक यहां तक नरम कर दिया जाना चाहिए कि सामान्य वर्ग के साठ प्रतिशत वाले दाखिले से भले छूट जाएं लेकिन ओबीसी के 30 फीसद अंक वाले को वह मौका दे दिया जाये? अदालत अगली सुनवाई में इस पर भी संभवत: विचार करेगी। इस बीच, संघ लोकसेवा आयोग का यह फैसला भी अभ्यर्थियों का मनोबल बढ़ाने वाला साबित होगा, जिसमें मुख्य परीक्षा देने वाली भाषा में भी इंटरव्यू दे सकने की बात कही गई है। पहले यह सुविधा हिन्दी-अंग्रेजी तक ही सीमित थी। जिस भाषा में आप धाराप्रवाह हों, उसमें विचार भी उतनी सशक्तता और प्रखरता से व्यक्त होते हैं। यह तथ्य कई शैक्षणिक प्रयोगों में कब का स्थापित हो चुका है। फिर इसे यूपीएससी द्वारा अपनाने में हुई अब तक देरी का ही कारण समझ से परे है। खुद आयोग को यह अनुभव है कि जैसे ही हिन्दी माध्यम में पहले लिखित और साक्षात्कार की छूट दी गई, सर्वोच्च सेवाओं के फाटक हिन्दी प्रदेशों के अभ्यर्थी के लिए खुल गये। इसके पहले अंग्रेजी को ही तरजीह देते रहने के कारण अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में देश के दक्षिणी राज्यों का अधिकतर बोलबाला था। हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के बावजूद यहां भी अंग्रेजी से मात खा जाती थी। हिन्दी भाषी कुछ चुनिंदा उम्मीदवार ही सफल हो पाते थे, जो अंग्रेजी जुबान में सहज थे। अखिल भारतीय सेवाओं में भागीदारी का यह बंटा और आधा अनुपात देश के संघीय ढांचे के लिहाज से भी अधूरा था। अब गैर हिन्दी भारतीय भाषाओं को महत्त्व मिलने से यूपीएससी के तहत आने वाली तमाम सेवाएं भागीदारी की दृष्टि से समग्र और सम्पूर्ण हो जाएंगी। साक्षात्कार में आत्मविश्वास से भरे अभ्यर्थियों के देश के विभिन्न मसलों पर उनके विजन धाराप्रवाह सामने आएंगे। यह सुशासन और विकास के नजरिये से भी फलदायक होगा। इसी दरम्यान, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के पांच फीसद छात्रों की ट्यूशन फीस माफ करने की घोषणा भी स्वागतयोग्य है। बस, चौकसी रहे कि फर्जी प्रमाण पत्र वाले ये सुविधाएं न ले उड़ें(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,14.7.11)।

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