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09 जुलाई 2011

यूपी बोर्डःबदलेगा पाठ्यक्रम व मूल्यांकन पद्धति

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए हाईस्कूल व इण्टर के पाठ्यक्रम व मूल्याकंन में फेरबदल किया है। नयी व्यवस्था में इण्टर के चार विषयों भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान व जीव विज्ञान का पाठ्यक्रम काफी हद तक सीबीएसई बोर्ड की तरह कर दिया गया है। बोर्ड ने यह फेरबदल राष्ट्रीय स्तर की मेडिकल व इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा को ध्यान में रखते हुए किया है। हाई स्कूल में मूल्यांकन के तरीके में बदलाव किया गया है। माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक संजय मोहन और सचिव प्रभा त्रिपाठी ने शुक्रवार को प्रेस वार्ता में यह जानकारी देते हुए बताया कि परिषद ने हाईस्कूल परीक्षा में अब सभी विषयों का मू्ल्यांकन दो तरह से कराने का निर्णय लिया है। इसमें पहला मू्ल्यांकन प्रायोगिक परीक्षा व प्रोजेक्ट वर्क के आधार पर 30 अंक का होगा और दूसरा 70 अंक का मूल्यांकन प्रश्नपत्र की जांच से होगा। यह व्यवस्था इसी सत्र (2011-12) से लागू की जा रही है। दूसरी तरफ प्रदेश के मान्यता प्राप्त इण्टर कालेजों के इण्टर कक्षाओं के चार विषयों भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित विषय के पाठ्यक्रम में बदलाव कर राष्ट्रीय स्तर के पाठ्यक्रम की तरह से कर दिया गया है। अब यूपी बोर्ड के इण्टर के चार विषयों का पाठ्यक्रम सीबीएसई के समान होगा, लेकिन इसे अगले सत्र से (जुलाई- 2012 से) लागू किया जाएगा। इन विषयों की पुस्तकें भी इण्टर कक्षाओं में अगले सत्र से ही पढ़ाई जाएंगी। उन्होंने बताया कि चूंकि सभी मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश की सभी राष्ट्रीय परीक्षाओं के ज्यादातर प्रश्न पत्र सीबीएसई व आईसीएसई के ही पाठ्यक्रम से बनाये जा रहे हैं, इसलिए इसमें यूपी बोर्ड के छात्रों के साथ पूरा न्याय नहीं हो पा रहा था। यही नहीं सीबीएसई व आईसीएसई के पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे भी अध्याय हैं, जिन्हें यूपी बोर्ड में नहीं पढ़ाया जाता है। इसी बात को ध्यान में रखकर तय किया गया है कि यूपी बोर्ड के इण्टरमीडिएट कक्षाओं के चार विषयों भौतिक, रसायन, जीव विज्ञान और गणित के पाठ्यक्रम अब राष्ट्रीय स्तर के पाठ्यक्रम (सीबीएसई) की तरह ही होगा। इन विषयों में अब सीबीएसई की तरह की ही राष्ट्रीय स्तर के पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ाई जाएंगी। इण्टर कक्षाओं में यह व्यवस्था जुलाई -2012 से लागू की जा रही है। इसी तरह अब हाई स्कूल की परीक्षा में अब दो तरह के मूल्यांकन होंगे। पहले तरह का मूल्यांकन छात्र ने वर्ष भर अपने स्कूल में क्या पढ़ा, इसका होगा और दूसरा मूल्यांकन वाषिर्क परीक्षा में प्रश्न पत्र के माध्यम से किया जाएगा। अब तक हाई स्कूल में छात्र का मूल्यांकन एक ही तरह से वाषिर्क परीक्षा के आधार पर होता था। लेकिन इस वर्ष से (वर्तमान शैक्षिक सत्र 2011-12 से) कक्षा 9 एवं 10 में सभी विषयों का मूल्यांकन दो तरह से होगा। हाई स्कूल में छात्र कुल 47 विषयों में जिन छह विषयों का चयन करेगा, उसमें से प्रत्येक में दो परीक्षा होगी। एक परीक्षा प्रायोगिक होगी और दूसरा प्रश्न पत्र की जांच से होगी। हाई स्कूल में सभी विषय 100-100 अंक के होंगे। पहली परीक्षा प्रयोगिक (प्रोजेक्ट और सृजनात्मक) होगी। इसमें छात्र साल भर में विद्यालय में जो भी अध्ययन व सर्जनात्मक कार्य करेगा, उसके लिए उसे 15-15 अंक कुल (30 अंक) दिया जाएगा। इसमें से शेष 70 अंक छात्र को वाषिर्क परीक्षा के प्रश्न पत्र के मूल्यांकन से मिलेंगे। माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक एवं सचिव ने बताया कि हाई स्कूल के सभी विषयों में यह व्यवस्था इसी सत्र से लागू की जा रही है, लेकिन भाषा वाले विषयों के मूल्यांकन में थोड़ा बदलाव किया गया है। भाषा के तीन विषयों (हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत) में 70 अंक का मूल्यांकन तो प्रश्न पत्र के आधार पर होगा, लेकिन भाषा के विषयों का 30 अंक का मूल्यांकन लेखन शैली, वाचन शैली और व्याकरण के आधार पर होगा। मसलन हाई स्कूल के छात्रों को भाषा के प्रयोगिक मूल्यांकन के लिए 10-10 अंक के तीन टेस्ट देने होंगे। इसमें छात्र को लेखन शैली का 10 अंक का टेस्ट अगस्त में, वाचन शैली का 10 अंक का टेस्ट अक्टूबर में और व्याकरण शैली का 10 अंक का टेस्ट नवम्बर में होगा। इसी प्रकार हाई स्कूल के छात्र को भाषा वाले विषय में तीन टेस्ट से कुल 30 अंक प्राप्त होंगे। शेष 70 अंक उसे वाषिर्क परीक्षा के प्रश्नपत्र के मूल्यांकन से मिलेंगे। माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधिकारियों बताया कि यूपी बोर्ड के छात्रों का मूल्यांकन अभी तक मात्र एक ही तरह से वाषिर्क परीक्षा के प्रश्न पत्र के आधार पर कराया जा रहा था। उन्होंने कहा कि परिषद ने इसे ठीक नहीं समझा कि छात्र का मूल्यांकन एक ही तरह से हो। इसलिए अब छात्र का आन्तरिक मू्ल्यांकन और वर्ष भर में विद्यालय में किये गये कायरे के आधार पर मूल्यांकन दो तरह से किया जाएगा। इससे यूपी बोर्ड के छात्रों को काफी सहूलियत मिलेगी और वह राष्ट्रीय स्तर के विद्यालयों के मुकाबले कहीं पर भी कमजोर नहीं साबित होंगे(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,9.7.11)।

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